" मैं हूँ एक , राह है दो मेरे "
मैं हूँ एक , राह है दो मेरे
पहला जिसमे भीड़ जमा है
दूसरा जिसपे कोई चला नहीं है
सवाल करता मेरे से मन मेरा
ज़िद्दी सा बार - बार
चलूं तो पहला रह पे ही क्यों ?
क्या ही कमियाँ होगी
अगर चला ढूंढने नई रह जो ?
इस सफर में बढ़ने से पहले
बीनू तो किस रह को बीनू ?
मैं एक पर राह दो मेरे
कवि : पिन्टूकुमार , कक्षा : 9th
अपना घर
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