गुरुवार, 27 फ़रवरी 2025

कविता : " फरिस्ते "

" फरिस्ते "
फरिस्ते भी किसी को याद करेंगे ,
आकर गुन - गुनाकर चलते बनेगे | 
घुमता रहुँगा उस जगह मैं , 
जहाँ मुश्किलों के बीच रह गए 
इंतजार हैं वो सुनहरे दिन का 
फरिस्ते भी  आयेंगे कल क्या ?
क्या पता वो आयेंगे भी की नहीं, 
लेकिन मेरा वहां  जाना तो है लिखा | 
उसे पाने के अलावा कुछ भी नहीं दिखा | 
फरिस्ते भी मुझे क्या याद करेंगे 
उसकी यादे हम भूल गए क्या ?
नहीं यादे कभी भुलाई नहीं जाती 
कविः अजय कुमार , कक्षा: 10th 
अपना घर 
  

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