" फरिस्ते "
फरिस्ते भी किसी को याद करेंगे ,
आकर गुन - गुनाकर चलते बनेगे |
घुमता रहुँगा उस जगह मैं ,
जहाँ मुश्किलों के बीच रह गए
इंतजार हैं वो सुनहरे दिन का
फरिस्ते भी आयेंगे कल क्या ?
क्या पता वो आयेंगे भी की नहीं,
लेकिन मेरा वहां जाना तो है लिखा |
उसे पाने के अलावा कुछ भी नहीं दिखा |
फरिस्ते भी मुझे क्या याद करेंगे
उसकी यादे हम भूल गए क्या ?
नहीं यादे कभी भुलाई नहीं जाती
कविः अजय कुमार , कक्षा: 10th
अपना घर
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