"गुमसुम परिंदा "
सोए हुए गुमसुम परिंदा,
अब जाग जाओ तुम|
देखो विपत्तियों का गठर लदा हुआ है,
हर एक उम्मीदों पर|
अब जरा एक झलक देख लो,
अपने अंदर की आत्मा को|
तुम्हारी हर बातों से दुःख है,
सोए हुए गुमसुम परिंदा|
अब जाग जाओ तुम ,
तुमने सबको देखा है|
और देखा है लोगो की कयामत,
अब क्या सोचते हो|
बस एक ही बात में उलझे रहते हो,
सोए हुए गुमसुम परिंदा|
अब जाग जाओ तुम,
कवि :पंकज कुमार ,कक्षा :9th
अपना घर
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