कविता : " आपसी व्यव्हार ( २) "
वैसे तो हम नजर अंदाज नहीं करते किसी को ,
न ही बुरी नजर से देखते है ,
अरे गलती हो गई उससे छोटी सी ,
पर कुछ हम भी समझते है।
थोड़ी सी मजबूती होगी उसकी भी ,
पर हम देखकर सवरते है ,
क्योकि हम आपसी व्यव्हार रखते है।
अकेला रहना भी हानिकारक है ,
यह मायाजाल दिलो - दिमाग पर हावी है ,
मयूष को भी संभालते है ,
हमें पता है हमसे नाराज़ है वे सब,
लेकिन हम हालातो को देखते है।
क्योकि हम आपसी व्यव्हार रखते है।
क्योकि हम आपसी व्यव्हार रखते है ...............।
कवि : सुल्तान कुमार, कक्षा : 11th,
अपना घर
1 टिप्पणी:
बहुत सुंदर
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