सोमवार, 14 अप्रैल 2025

कविता : " आपसी व्यव्हार ( २) "

कविता : " आपसी व्यव्हार ( २) "
वैसे तो हम नजर अंदाज नहीं करते किसी को ,
न ही बुरी नजर से देखते है ,
अरे गलती हो गई उससे छोटी सी ,
पर कुछ हम भी समझते है। 
थोड़ी सी मजबूती होगी उसकी भी ,
पर हम देखकर सवरते है ,
क्योकि हम आपसी व्यव्हार रखते है। 
अकेला रहना भी हानिकारक है ,
यह मायाजाल दिलो - दिमाग पर हावी है ,
मयूष को भी संभालते है , 
हमें पता है हमसे नाराज़ है वे सब,
लेकिन हम हालातो को देखते है। 
क्योकि हम आपसी व्यव्हार  रखते है। 
क्योकि हम आपसी व्यव्हार  रखते है ...............।
कवि : सुल्तान कुमार, कक्षा : 11th,
अपना घर