" एकलव्य "
थे वो एक महापुरुष ,
बिता डाली सारी जिंदगी जंगलो में , एक आदिवासी के रूप में
ठान रखा था बनुँगा अर्जुन जैसा धनुष बाड़
द्रोणाचार्य के मना करने पर भी सीखी धनुष की विध्या
द्रोणाचार्य ने कहा अर्जुन जैसा कोई नहीं धनुष बाड़ हुआ
तो फिर महायुद्धा एकलव्य कौन थे।
जिससे छल से अँगूठा न माँगा होता।
उसी समय जांगले में शिकार के लिए गए थे अर्जुन ,
आगे - आगे उनका कुत्ता था।
कुत्ते ने जब देखा एकलव्य को लगा दी थी गोहार,
था एकलव्य का सटीक निशना लगा दी तीरो की बाड़।
देखकर एकलव्य का यह लड़ कौसलिया ,
अर्जुन भी चकित हैरान हुआ।
फिर उस अर्जुन ने भी द्रोणाचार्य से हरसाया था ,
की एकलव्य कौन जो सटीक निशना तान रखा है.
अगर एकलव्य उस समय उस कुत्ते को न मारा होता।
तो फिर उस अर्जुन ने भी उस कर्ण को छल से न मारा होता।
फिर तो उस एकलव्य की वह - वह होती
अगर धोखे से अँगूठा न माँगा होता।
देखकर एकलव्य का यह लड़ कौसलिया ,
अर्जुन भी चकित हैरान हुआ।
अर्जुन भी चकित हैरान हुआ............ ।
कवि : निरु कुमार, कक्षा : 9th,
अपना घर
4 टिप्पणियां:
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http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!
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बहुत ही सुंदर कथ्य ...
सुन्दर प्रस्तुति
बहुत सुंदर प्रस्तुति।
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