गुरुवार, 10 अप्रैल 2025

कविता : " एकलव्य "

 " एकलव्य " 
थे वो एक महापुरुष , 
बिता डाली सारी जिंदगी जंगलो में , एक आदिवासी के रूप  में 
ठान रखा था बनुँगा अर्जुन जैसा धनुष बाड़ 
द्रोणाचार्य के मना करने पर भी सीखी धनुष की विध्या 
द्रोणाचार्य ने कहा अर्जुन जैसा कोई नहीं धनुष बाड़ हुआ 
तो फिर महायुद्धा एकलव्य कौन थे। 
जिससे छल से अँगूठा न माँगा होता। 
उसी समय जांगले में शिकार  के लिए गए थे अर्जुन ,
आगे - आगे उनका  कुत्ता था। 
कुत्ते ने जब देखा एकलव्य को लगा दी थी गोहार,
 था एकलव्य का सटीक निशना लगा दी तीरो की बाड़। 
देखकर एकलव्य का यह लड़ कौसलिया ,
अर्जुन भी चकित हैरान हुआ। 
फिर उस अर्जुन ने भी द्रोणाचार्य से हरसाया था ,
की एकलव्य कौन जो  सटीक निशना तान रखा है. 
अगर एकलव्य उस समय उस कुत्ते को न मारा होता।
तो फिर उस अर्जुन ने भी उस कर्ण को छल से न मारा होता। 
 फिर तो उस एकलव्य की वह - वह होती 
अगर धोखे से अँगूठा न माँगा होता।  
देखकर एकलव्य का यह लड़ कौसलिया ,
अर्जुन भी चकित हैरान हुआ। 
अर्जुन भी चकित हैरान हुआ............ ।
कवि : निरु कुमार, कक्षा : 9th,
अपना घर 

4 टिप्‍पणियां:

Ravindra Singh Yadav ने कहा…

आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर शुक्रवार 11 अप्रैल 2025 को लिंक की जाएगी ....

http://halchalwith5links.blogspot.in
पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!

!

Priyahindivibe | Priyanka Pal ने कहा…

बहुत ही सुंदर कथ्य ...

Onkar ने कहा…

सुन्दर प्रस्तुति

MY GOOD NIVESH ने कहा…

बहुत सुंदर प्रस्तुति।
Welcome to my blog