शनिवार, 19 अप्रैल 2025

कविता : " चेतक "

कविता : " चेतक "
 देखकर चेतक का रंग ,
दुश्मनों को भी कर दिया दंग।  
राणा के हर एक इसरो को भाप जाता था,
हर वार से बचकर लोगो को मार गिराता था।
हवा से भी तेज भागने वाला ,
वह चेतक कहलता था। 
जब युद्ध केबीच उत्तरा हो ,
महाराणा प्रताप का चेतक पुतला हो। 
बीन गिरे सबको गिरा जाता था , 
हवा के सम्मान वह चेतक कह लता था। 
प्राप्त हुआ वीरगति को ,
घायल चेतक राणा की जान बचाया था ,
खाकर तीरो की मार फिर भी मार गिराया था। 
हवा के सम्मान वह चेतक कहलाता था। 
हवा से भी तेज भागने वाला ,
वह चेतक कहलता था। 
वह चेतक कहलाता था ..............।  
कवि : निरु कुमार, कक्षा : 9th,
अपना घर।