" एकलव्य संग कर्ण महान हुआ "
जिसके नाम से मौत भी काप उठती थी ,
जिसके नाम से मौत भी काप उठती थी ,
हर तीर जाके वीरो के सीनो पर जाके लगती थी ,
जिसने लोगो को किया प्रभाभित ,
तीरो के ऊपर तीर लगाया ,
ए ए ए से एकलव्य इस धरती पर आया।
लेकिन थे एक महा युद्धा कर्ण थे आए ,
जो थे अर्जुन से टकराए।
न होने के बाबजूद भी उन्होने ऊपर चाहा ,
अर्जुन थे एक दुष्ट धनुष बाड़ ,
जिन्होने दोनों का अपमान चाहा।
कुंती पहचान लिया अपने पुत्र को
फिर भी मौन रही।
कर्ण भी उस अर्जुन से से टकराए थे ,
युद्ध भूमि में हारकर भी महान कहलाए थे।
लगा डाला मौत को पला था।
तीरो के ऊपर तीर एकलव्य चला डाला था
कोई नहीं था साथ तो फिर भी कर्ण ने उस अर्जुन पर तीर चलाई थी ,
सोच कर यह मन अभी भी लड़ाई जारी थी।
कृष्ण ने भी उस अर्जुन को समझया था ,
कहकर हाथ में धनुष बाड़ थमाई थी
की वो भी जीते युद्ध भूमि को ,
अगर उस कर्ण को न मारा होता।
क्या होता अगर एकलव्य और कारन एक साथ होते ?
देख कर यह ताल - मेल सब हैरान होते।
एकलव्य संग कर्ण महान हुआ ,
एकलव्य संग कर्ण महान हुआ ,
एकलव्य संग कर्णमहान हुआ ..............।
कवि : निरु कुमार, कक्षा : 9th,
अपना घर।
1 टिप्पणी:
बहुत सुंदर लिखा है ।
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