" क्यूँ मुस्कराता हूँ "
क्या सोचकर रह जाता हूँ
चलती रहो में यू रुक जाता हूँ।
अपने हालातों को सोंचकर ,
न जाने खूद पर क्यूँ मुस्कराता हूँ।
जब - जब थककर रुकता हूँ ,
आगे निकलने वाले पर सोचकर हूँ ,
न जाने खूद पर क्यूँ मुस्कराता हूँ।
अजीब सा पागलपन दिमाग पर होती है।
बढ़ने की चाह ये भारी है ,
सबकुछ जानते हुआ हुए भी मैं करता हूँ।
कभी - कभी अपने को भूला बैठता हूँ।
चलती रहो में यूँ रुक जाता हूँ ,
न जाने क्या सोचकर ,
खुद पर ही मुस्कराता हूँ।
कविः साहिल कुमार , कक्षा: 8th
अपना घर
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें