बुधवार, 5 मार्च 2025

कविता: " क्यूँ मुस्कराता हूँ "

  " क्यूँ मुस्कराता हूँ "
 क्या सोचकर रह जाता हूँ 
चलती रहो में यू रुक जाता हूँ। 
अपने हालातों को सोंचकर , 
न जाने खूद पर क्यूँ मुस्कराता हूँ। 
जब - जब थककर रुकता हूँ , 
आगे निकलने वाले पर सोचकर हूँ ,
न जाने खूद पर क्यूँ मुस्कराता हूँ। 
अजीब सा पागलपन दिमाग पर होती है। 
बढ़ने की चाह ये भारी है ,
सबकुछ जानते हुआ हुए भी मैं करता हूँ। 
कभी - कभी अपने को भूला बैठता हूँ। 
चलती रहो में यूँ रुक जाता हूँ ,
न जाने  क्या सोचकर ,
खुद पर ही मुस्कराता हूँ। 
कविः साहिल कुमार , कक्षा: 8th 
 अपना घर 

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