रविवार, 2 मार्च 2025

कविता :" बंद पिंजरे में "

" बंद पिंजरे में " 
 कब तक बंद रहुगा इस पिंजरे में 
 एक दिन तो बहार आना हैं। 
बहुत ही जी लिए घुट - घुट  कर, 
कुछ  करके तो दिखाना हैं। 
वे वक्त कब आएगा ,
जब करुगा सपने सकार 
 एक मौका देकर तो देखोये। 
नहीं जाने दुगा बेकार ,
खुश नहीं हूँ अपनी इस जिंदगी से 
एक बार तो बहार आना हैं। 
देखाऊगा मंजिल को छूकर 
लोगो की मन की जलने 
 को मिटाना है। 
कविः मंगल कुमार ,कक्षा: 9th 
 अपना घर  

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