" बंद पिंजरे में "
कब तक बंद रहुगा इस पिंजरे में
एक दिन तो बहार आना हैं।
बहुत ही जी लिए घुट - घुट कर,
कुछ करके तो दिखाना हैं।
वे वक्त कब आएगा ,
जब करुगा सपने सकार
एक मौका देकर तो देखोये।
नहीं जाने दुगा बेकार ,
खुश नहीं हूँ अपनी इस जिंदगी से
एक बार तो बहार आना हैं।
देखाऊगा मंजिल को छूकर
लोगो की मन की जलने
को मिटाना है।
कविः मंगल कुमार ,कक्षा: 9th
अपना घर
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