"मैं - एक राह दो मेरे मंजिल भी एक "
मैं - एक राह दो मेरे मंजिल भी एक
आंधी वेग गति से आएगा |
या आएगा तो धीमे धीमे
कैसे भेष सजा कर आएगा |
वर्षा काल की फुहिया भी
सूखा घड़ा भर पायेगा या न |
शाम ढला तो फिर से वापस
सवेरा लौटेगा या अंधार होता ही जाएगा |
कैसा सफर इस नाव पे होगा ?
चलता हूँ अब सवार होने को |
मै - एक राह दो - मेरे मंजिल भी एक | कवि :पिन्टू कुमार कक्षा : 10 th
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