" परेशानी "
कितनी बदली हुई है महफिले ,
जो फुर्सत नहीं किसी को,
जो गुजरे हुआ कल को निहारे ,
हर किसी की अपनी परेशानीयाँ है।
इन परेशानियाँ कि अपनी कहानियाँ है।
जहा देखू उदासीन मिले जहान सारा ,
ना जाने क्यों बना बैठा बेगाना ,
नजरे भी अब झुक जाती है।
इन नराहो पर जवाब दे जाती है।
इन परेशानियाँ न जाने कितनी को दुख दे जाती है।
कभी - कभी सोचता हूँ सब खत्म हो जाए ,
ये दुखो का पहाड़ कही गुम हो जाए।
इतनी फुर्सत नहीं है अब अपने को ,
जो देख सके बीते हुए सपने को ,
वो मस्त बचपन खेल राह था सपने को ,
मन की बात छपा न पाया मन में ,
अब कहाँ छिपाए इन परेशनियाँ को।
कोई जगह नहीं जहाँ रखू इन कहानियों को।
कवि : साहिल कुमार , कक्षा : 9th,
अपना घर।
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