रविवार, 16 मार्च 2025

कविता : " हौसला रखो "

 " हौसला रखो "
 हालातो से तंग आकर ,
उम्मीदों को पूरा करना छोड़ दिया। 
जूनून थे शरीर के अंग - अंग में  ,
पर उसको  जगाने के लिए मुँह मोड़ लिया 
हौसले बढ़ जाएगी ,
चीज तो नहीं मिलेगी ,
पर उम्मीद रखो ,
चड़ना होगा तो चाँद पर भी चढ़ जाएगे। 
उम्मीद के नीचे भी बूस्टर लगाने की चाह हैं। 
आगे क्या होगा इसका न कोई परवाह हैं। 
कवि : गोविंदा कुमार ,कक्षा : 9th,
अपना घर 

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