" हौसला रखो "
हालातो से तंग आकर ,
उम्मीदों को पूरा करना छोड़ दिया।
जूनून थे शरीर के अंग - अंग में ,
पर उसको जगाने के लिए मुँह मोड़ लिया
हौसले बढ़ जाएगी ,
चीज तो नहीं मिलेगी ,
पर उम्मीद रखो ,
चड़ना होगा तो चाँद पर भी चढ़ जाएगे।
उम्मीद के नीचे भी बूस्टर लगाने की चाह हैं।
आगे क्या होगा इसका न कोई परवाह हैं।
कवि : गोविंदा कुमार ,कक्षा : 9th,
अपना घर
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