सोमवार, 3 मार्च 2025

कविता: " बचपन के दिन "

 " बचपन के दिन "
 सुबह से लेकर शाम तक शाम तक। 
खेलता रहता पुरे दिन तक 
थकता न था फिर भी 
वे भी क्या दिन थे। 
 मेरे बिते हुए बचपन के दिन थे। 
. खाना और खेलना लगता था 
पुरे जीवन भर। 
जब नहीं निकले थे मेरे पर ,
पापा के मार से डरता था।  
जब गुस्सा करता था। 
माँ के पास जाया करता था। 
वे भी  क्या दिन थ,
वे मेरे बचपन के दिन थे। 
गुब्बारे वाले आते थे ,
माँ चारो ओर पुकारते थे। 
कभी खेलौना वाला आता था। 
दस -पाँच का ही सही 
खेलौना खरीद ले देती थी। 
माँ तो माँ है वे कभी दुखी नहीं होती थी। 
बचपन के  वे भी दिन,
गुजरा यारो के बिना। 
वे भी क्या दिन थे,
वे मेरे बिते हूँए दिन थे। 
कविः पंकज कुमार , कक्षा: 10th 
अपना घर 

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