गुरुवार, 21 अगस्त 2025

कविता: "कुछ करना है"

"कुछ करना है"
 सिर पर भरी बोझ आ गया है ,
ठान लिया हूँ अब कुछ करने का। 
चला जाऊ कही और नया बसेरा में ,
मन नहीं लगता कुछ करने का। 
वापस चला जाऊ उस स्वतंत्र आकाश में ,
जहाँ कोई रोक - टोक न हो। 
मुक्त हो जहाँ इन मोटी बेड़िया से ,
जहाँ कोई रोक - टोक ही न हो। 
ठान लिया हूँ मन में एक बात जो है, बहुत खास। 
बीत गया वो दो पल मेरे लिए बन के बस राख। 
सिर पर भरी बोझ आ गया है,  
ठान लिया हूँ अब कुछ करने का। 
 कवि: मंगल कुमार, कक्षा:9th,
अपना घर। 
 

1 टिप्पणी:

Priyahindivibe | Priyanka Pal ने कहा…

सुंदर अभिव्यक्ति