"नई सुबह"
कब नई सुबह आएगी ,
आज़ादी की किरणे लाएगी।
जहाँ खुलकर सूरज चमकेगा।
न सर किसी का झुक सकेगा ,
इंकलाब का नारा न रुक सकेगा।
खुलकर सावन जहाँ अपनी ,
फुलवारी से देश महकाएगी।
तब ये देश गर्व से स्वतंत्र कहलाएगा।
जहाँ उठा शीश हिमालय विरो की गाथा गाएगा ,
से निकलकर सूर्य , एक नया सवेरा लाएगा ,
तब देश आज़ादी पूर्व कहलाएगा।
कब नई सुबह आएगी ,
आज़ादी की किरणे लाएगी।
कवि: सुल्तान कुमार, कक्षा: 11th,
अपना घर।
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