गुरुवार, 21 अगस्त 2025

कविता: "नई सुबह"

 "नई सुबह"
कब नई सुबह आएगी ,
आज़ादी की किरणे लाएगी। 
जहाँ खुलकर सूरज चमकेगा। 
न सर किसी का झुक सकेगा ,
इंकलाब का नारा न रुक सकेगा। 
खुलकर सावन जहाँ अपनी ,
फुलवारी से देश महकाएगी। 
तब ये देश गर्व से स्वतंत्र कहलाएगा। 
जहाँ उठा शीश हिमालय विरो की गाथा गाएगा , 
से निकलकर सूर्य , एक नया सवेरा लाएगा ,
 तब देश आज़ादी पूर्व कहलाएगा। 
कब नई सुबह आएगी ,
आज़ादी की किरणे लाएगी।
कवि: सुल्तान कुमार, कक्षा: 11th, 
अपना घर। 

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