"कहानी जिक्र का"
मैं हारा तो नहीं मगर ,
अँधेरे की छाया से,
ताब्यात हल्की सी बेहतर से बत्तर है।
हँस पाता हूँ आज भी मैं ,
यह जानकर सुन तौबा मेरे,
कि फिर उग आया बड़े बड़े इरादे से मैं।
जैसे किसी बीते जन्मो में जरूर कभी ,
न हारने की कसमे हो खाई।
आज भी बराबर जोश और जज्बा है।
एक नया कहानी बोने का जिसे सुन - जान - बूझकर ,
दर चिंता और रोग आएगा।
मेरे प्रिय शत्रु को।
अंत तो नहीं मगर,
कहानी दोहराने जरूरत पर लौटा।
सुन हुकूमत साहिल को भी होगा ऊंची लहरे से।
एक कहानी जिक्र का ,
सितारे के बीच छोड़ जाना होगा।
मैं हारा तो नहीं मगर ,
अँधेरे की छाया से,
ताब्यात हल्की सी बेहतर से बत्तर है।
कवि: पिन्टू कुमार, कक्षा: 10th,
अपना घर
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