शुक्रवार, 22 अगस्त 2025

कविता: "कहानी जिक्र का"

 "कहानी जिक्र का"
 मैं हारा तो नहीं मगर ,
अँधेरे की छाया से, 
ताब्यात हल्की सी बेहतर से बत्तर है। 
हँस पाता हूँ आज भी मैं ,
यह जानकर सुन तौबा मेरे, 
कि फिर उग आया बड़े बड़े इरादे से मैं।  
जैसे किसी बीते जन्मो में जरूर कभी ,
न हारने की कसमे  हो खाई। 

आज भी बराबर जोश और जज्बा है। 
एक नया कहानी बोने का जिसे सुन - जान - बूझकर , 
दर चिंता और रोग आएगा। 
मेरे प्रिय शत्रु को। 

अंत तो नहीं मगर, 
कहानी दोहराने जरूरत पर लौटा। 
सुन हुकूमत साहिल को भी होगा ऊंची लहरे से। 
एक कहानी जिक्र का ,
सितारे के बीच छोड़ जाना होगा। 
 मैं हारा तो नहीं मगर ,
अँधेरे की छाया से, 
ताब्यात हल्की सी बेहतर से बत्तर है। 
कवि: पिन्टू कुमार, कक्षा: 10th,
अपना घर 

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