"एक न एक दिन वो भी आएगा "
लोगो ने उन जमीनों को कवजा लिया ,
जो उनके कभी थे ही नहीं।
नदी का झोका फिर से आया ,
सबकुछ बहा ले गया छोड़ा कुछ भी नहीं।
सब को पता था एक वो भी आएगा ,
एक न एक दिन सब कुछ बहा ले जाएगा।
वो लेगी अपनी हिस्से की ज़मीन ,
देने में अगर की लापरवाहीं तो वो लेगी सबकुछ छीन।
की जब न मिले शेर को उसका हिस्सा तो चिल्लाता हैं ,
तो उसे दहाड़ कहते हैं।
ठीक उसी प्रकार नदी को न मिले तो बहा ले जाती सबकुछ ,
तो उसे हम सभी बाढ़ कहते हैं।
वो लेते अपने हिस्से का हक ,
जो की छीन ली गए थी वो आएगा सब को पता था ,
बहा ले जाएगी किसी को नहीं पता था।
कवि: नवलेश कुमार, कक्षा: 11th,
अपना घर।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें