रविवार, 10 अगस्त 2025

कवित: " गर्मी का आक्रमण "

 कवित: " गर्मी का आक्रमण "
पोछ  पोछ पसीना, 
हय! मई तो बेदम हुआ । 
सिर पर तारे मांडाराते  सार,
हय! मई तो चकरा गया । 
क्या बताऊ यार मेरे मई,
मई तो इस गर्मी से बौखाला गया । 
लगे जैसे सिर पर गोला आग का,
नजर मारते ही तुरंत,
हय! मेरे दिमाग की बत्ती बूज गया, 
आई बिजली भी न जाने क्यों ?
तुरंत ही चली गई । 
इस गर्मी से क्या बतलाऊ भाई मेरे, 
पसीना से मई लत पैट हुआ...... ।
कवि: पिंटू कुमार, कक्षा: 10th, 
अपना घर ।  

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