कवित: " गर्मी का आक्रमण "
पोछ पोछ पसीना,
हय! मई तो बेदम हुआ ।
सिर पर तारे मांडाराते सार,
हय! मई तो चकरा गया ।
क्या बताऊ यार मेरे मई,
मई तो इस गर्मी से बौखाला गया ।
लगे जैसे सिर पर गोला आग का,
नजर मारते ही तुरंत,
हय! मेरे दिमाग की बत्ती बूज गया,
आई बिजली भी न जाने क्यों ?
तुरंत ही चली गई ।
इस गर्मी से क्या बतलाऊ भाई मेरे,
पसीना से मई लत पैट हुआ...... ।
कवि: पिंटू कुमार, कक्षा: 10th,
अपना घर ।
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