"हवाए आ चली"
ठंडी सी हवा गुजरी पैरो से ,
जो ऐसा ठंडक दे गया।
दिल को दहका दिया इस तरह ,
जो दिल को भी भयभीत हो गया।
रूह काँप उठे थे मेरे ,
जब देखा परछाई काले - सुनहरे बदल को ,
बस आँखे तिकी थी मेरी उस पर।
हिम्मत तो मर गई ,
धीरे - धीरे पास आती गई।
मैं खामोश था धड़ कने बढ़ती गई ,
चिल्लाने कि कोशिश तो थी मेरी।
बस आवाज अटका था ,
पैर काँप रहे थे मेरे।
पर मैं खामोश था।
कवि: सुल्तान कुमार, कक्षा: 11th,
अपना घर।
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