"कुछ करना है"
सिर पर भरी बोझ आ गया है ,
ठान लिया हूँ अब कुछ करने का।
चला जाऊ कही और नया बसेरा में ,
मन नहीं लगता कुछ करने का।
वापस चला जाऊ उस स्वतंत्र आकाश में ,
जहाँ कोई रोक - टोक न हो।
मुक्त हो जहाँ इन मोटी बेड़िया से ,
जहाँ कोई रोक - टोक ही न हो।
ठान लिया हूँ मन में एक बात जो है, बहुत खास।
बीत गया वो दो पल मेरे लिए बन के बस राख।
चला जाऊ कही और नया बसेरा में ,
मन नहीं लगता कुछ करने का।
वापस चला जाऊ उस स्वतंत्र आकाश में ,
जहाँ कोई रोक - टोक न हो।
मुक्त हो जहाँ इन मोटी बेड़िया से ,
जहाँ कोई रोक - टोक ही न हो।
ठान लिया हूँ मन में एक बात जो है, बहुत खास।
बीत गया वो दो पल मेरे लिए बन के बस राख।
सिर पर भरी बोझ आ गया है,
ठान लिया हूँ अब कुछ करने का।
ठान लिया हूँ अब कुछ करने का।
कवि: मंगल कुमार, कक्षा:9th,
अपना घर।
1 टिप्पणी:
सुंदर अभिव्यक्ति
एक टिप्पणी भेजें