शनिवार, 30 अगस्त 2025

कविता: "शायद हम बड़े होने लगे है "

 "शायद हम बड़े होने लगे है "
समय बदल गया और दोस्त भी बदल गए हैं  ,
और परेशानियों से खुद लड़ने लगेहैं।  
शायद हम बड़े होने लगे हैं। 
परेशानीयों का सामना अकेले ही करना पड़ता हैं ,
न किसी का हाथ होता है न किसी का साया। 
अब तो परेशानी को देख मुस्कुराने लगे हैं,
शायद हम बड़े होने लगे हैं। 
पढ़ाई के लिए कुरवानी होती हैं ,
और दोस्तों से भी परेशानी होती हैं। 
और परेशानियों से  खुद लड़ने लगे ,
शायद हम बड़े होने लगे हैं। 
कक्षा: गोविंदा कुमार, कक्षा: 9th, 
अपना घर। 

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