बुधवार, 13 अगस्त 2025

कविता: " माँ "

 " माँ "
खो जाता हूँ उन यादो में।  
उसकी ख्वाबो और बातो में। 
हाथ फेर कर  गाती थी वो लोरी , 
मैं सो जाऊ इस लिए वो ,
करती थी अपनी नींद से चोरी। 
माँ कि ममता कुछ इसी तरह बतलाती है। 
 बच्चा था मई बस ये ही समझती थी। 
कवि:  निरंजन कुमार, कक्षा: 9th,
अपना घर। 

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