" माँ "
खो जाता हूँ उन यादो में।
उसकी ख्वाबो और बातो में।
हाथ फेर कर गाती थी वो लोरी ,
मैं सो जाऊ इस लिए वो ,
करती थी अपनी नींद से चोरी।
माँ कि ममता कुछ इसी तरह बतलाती है।
बच्चा था मई बस ये ही समझती थी।
कवि: निरंजन कुमार, कक्षा: 9th,
अपना घर।
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