"सूरजदेव अहिया "
फिर से अहिया ,
देर नय करिहा कहेले कि।
सोबल नय जा हको करि रतिया में।
करवटिया ले हकियो तो ,
अखिया मूंदे में डरो हकियो।
कहो कि एक बेरी सोबे पर ,
उपबन कि नय उठबन जल्दी।
जेकर खातिर हमराले ,
तोहार उगल मुखड़ा के।
देखले बड़ी देर हो जितो।
हे! सूरजदेव सुनली।
तुरंते अहिया देर नय करिहा।
उगिहा रोज भोरे - भोरे ।।
कवि: पिंटू कुमार, कक्षा: 10th,
अपना घर।
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