शनिवार, 23 अगस्त 2025

कविता: "वो ज़माने का एक पल"

 "वो ज़माने का एक पल"  
वो ज़माने का  एक पल ,
जिसमें  सब के सपने झूला करता था। 
 मैं भी मन ही मन फूला करता था ,  
सोच बड़ी थी और मेहनत कड़ी थी। 
फिर भी उसी रास्ते पर चलना जल्दी पड़ी ,
मुशीबत भी आ बैठी थी सिर पर। 
चलने को ना मिला कोई रास्ता ,
मैं भी यह थान लिया  करना है कुछ खास जरा  ,
वो मंजिल का एक रास्ता। 
जिसमे  पड़ा था कुछ खास जरा ,
वो ज़माने का एक पल। 
कवि: अजय  कुमार, कक्षा: 6th, 
अपना घर। 

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