"वो ज़माने का एक पल"
वो ज़माने का एक पल ,
जिसमें सब के सपने झूला करता था।
मैं भी मन ही मन फूला करता था ,
सोच बड़ी थी और मेहनत कड़ी थी।
फिर भी उसी रास्ते पर चलना जल्दी पड़ी ,
मुशीबत भी आ बैठी थी सिर पर।
चलने को ना मिला कोई रास्ता ,
मैं भी यह थान लिया करना है कुछ खास जरा ,
वो मंजिल का एक रास्ता।
जिसमे पड़ा था कुछ खास जरा ,
वो ज़माने का एक पल।
कवि: अजय कुमार, कक्षा: 6th,
अपना घर।
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