शुक्रवार, 22 अगस्त 2025

कविता: "सपनो में खोया जहाँ"

"सपनो में खोया जहाँ"
सपनो में खोया जहाँ ,
तपती धुप की परवाह नहीं ,
सीतल हवा चली मन को छूने। 
तीर्व गति से वह बिखराती ,
निर्मल बुँदे अपनी पंखा पसार। 
सपनो में खोया जहाँ। 
गुनगुनाती वह नाजुक कलियाँ ,
बातो - बातो में कुछ कह जाती है ,
कही दूर से चली महकती हवा ,
एक नई सन्देश अभास करती है। 
सपनो में खोया जहाँ ,
तपती धुप की परवाह नहीं ,
सपनो में खोया जहाँ। 

कवि: गोपाल कुमार, कक्षा: 6th,
अपना घर। 

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