मंगलवार, 26 अगस्त 2025

कविता: "आज कल का मौशम"

"आज कल का मौशम"
 चन मिंटो में मौशम ने मुँह मोड़ लिया ,
धुप काम होते ही पानी की बरसा किया।
प्यासे पौधे को पानी दिया ,
कच्चे सड़को को कीचड़ दिया, 
अचानक जब बारिश हुआ।  
रह - रह कर क्यों बरसया है ?
थोड़ा - थोड़ा सा ही पानी देता हैं। 
बारिश ने ला दिया मौशम में थोड़ा सा बदलाव ,
जिसने दिया बीमारियों को दावत,
बुखार का तो कोई समय नहीं। 
जिसका कोई कहर नहीं। 
फिर भी बरसने नाम नहीं लेता।
जिससे नदियाँ है बेहाल। 
कवि: अजय कुमार, कक्षा: 11th, 
 अपना घर। 

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