शनिवार, 30 अगस्त 2025

कविता "एक न एक दिन वो भी आएगा "

  "एक न एक दिन वो भी आएगा "
लोगो ने उन जमीनों को कवजा लिया ,
जो उनके कभी थे ही नहीं। 
नदी का झोका फिर से आया ,
सबकुछ बहा ले गया छोड़ा कुछ भी नहीं। 
सब को पता था एक वो भी आएगा ,
एक न एक दिन सब कुछ बहा ले जाएगा। 
वो लेगी अपनी हिस्से की ज़मीन ,
देने में अगर की लापरवाहीं तो वो लेगी सबकुछ छीन। 
की जब न मिले शेर को उसका हिस्सा तो चिल्लाता हैं ,
तो उसे दहाड़ कहते हैं। 
ठीक उसी प्रकार नदी को न मिले तो बहा ले जाती सबकुछ ,
 तो उसे हम सभी बाढ़ कहते हैं। 
वो लेते अपने हिस्से का हक ,
जो की छीन ली गए थी वो आएगा सब को पता था ,
बहा ले जाएगी किसी को नहीं पता था। 
कवि: नवलेश कुमार, कक्षा: 11th,
अपना घर। 

कविता: "शायद हम बड़े होने लगे है "

 "शायद हम बड़े होने लगे है "
समय बदल गया और दोस्त भी बदल गए हैं  ,
और परेशानियों से खुद लड़ने लगेहैं।  
शायद हम बड़े होने लगे हैं। 
परेशानीयों का सामना अकेले ही करना पड़ता हैं ,
न किसी का हाथ होता है न किसी का साया। 
अब तो परेशानी को देख मुस्कुराने लगे हैं,
शायद हम बड़े होने लगे हैं। 
पढ़ाई के लिए कुरवानी होती हैं ,
और दोस्तों से भी परेशानी होती हैं। 
और परेशानियों से  खुद लड़ने लगे ,
शायद हम बड़े होने लगे हैं। 
कक्षा: गोविंदा कुमार, कक्षा: 9th, 
अपना घर। 

बुधवार, 27 अगस्त 2025

कविता: "विचार"

 "विचार" 
बाढ़ से भी तीव्र गति से चलता ,
यह मन के विचार।
 यह शब्दों से आरपार कर जाते। 
एक ही पल में रुख बदल जाता है। 
सिक्के के दो पहलू गिना जाता।  
बाढ़ से भी तीव्र गति से जाता , 
 यह मन के विचार। 
यह हर दिलो का मालिक होता। 
लाखों प्रयास  बाद ,
यह अपने शब्दों को जीत दिलाता। 
यह अपना एक नया इतिहास रचता। 
अपने दिलो में बस जाता है। 
बाढ़ से भी तीव्र गति से चलता ,
 यह मन के विचार। 
कवि: अमित कुमार, कक्षा: 11th,
अपना घर।  

मंगलवार, 26 अगस्त 2025

कविता: "आज कल का मौशम"

"आज कल का मौशम"
 चन मिंटो में मौशम ने मुँह मोड़ लिया ,
धुप काम होते ही पानी की बरसा किया।
प्यासे पौधे को पानी दिया ,
कच्चे सड़को को कीचड़ दिया, 
अचानक जब बारिश हुआ।  
रह - रह कर क्यों बरसया है ?
थोड़ा - थोड़ा सा ही पानी देता हैं। 
बारिश ने ला दिया मौशम में थोड़ा सा बदलाव ,
जिसने दिया बीमारियों को दावत,
बुखार का तो कोई समय नहीं। 
जिसका कोई कहर नहीं। 
फिर भी बरसने नाम नहीं लेता।
जिससे नदियाँ है बेहाल। 
कवि: अजय कुमार, कक्षा: 11th, 
 अपना घर। 

सोमवार, 25 अगस्त 2025

कविता: "जिन्दगी में कुछ करो "

 "जिन्दगी में कुछ करो " 
जिन्दगी में कुछ करना सीखो ,
पड़ - लिख कर कुछ ज्ञान सीखो। 
अगर जिन्दगी में कुछ करना है तो ,
उस हथियार को अपना अपना हथियार बनाना सीखो। 
हिम्मत हमें कभी हरनी नहीं है ,
कठिनाई का जम कर सामना करना सीखो। 
जिन्दगी में कुछ करना सीखो। 
अगर सफलता पानी हैं तो ,
हथियार को अपना हथियार बनाकर लड़ना सीखो ,
जिन्दगी में कुछ करना सीखो।
कवि: विष्णु कुमार, कक्षा: 6th,
अपना घर। 

कविता: "हवाए आ चली"

 "हवाए आ चली"
 ठंडी सी हवा गुजरी पैरो से ,
जो ऐसा ठंडक दे गया। 
दिल को दहका दिया इस तरह ,
जो दिल को भी भयभीत हो गया। 
रूह काँप उठे थे मेरे ,
जब देखा परछाई काले - सुनहरे बदल को ,
बस आँखे तिकी थी मेरी उस पर। 
हिम्मत तो मर गई ,
धीरे - धीरे पास आती गई। 
मैं खामोश था धड़ कने बढ़ती गई ,
चिल्लाने कि कोशिश तो थी मेरी। 
बस आवाज अटका था , 
पैर काँप रहे थे मेरे। 
पर मैं खामोश था। 
कवि: सुल्तान कुमार, कक्षा: 11th, 
अपना घर। 
 

रविवार, 24 अगस्त 2025

कविता: "बहन तेरी याद आती है"

"बहन तेरी याद आती है"
बहन तेरी याद आती है ,
न जाने क्यों तेरी याद आती है। 
वो खुशहाली के दिन ,
मुझे आज भी  रुलाती है। 
बहन तेरी याद आती है। 
तेरी हर एक स्माइल मेरे मन को मोह लेती है , 
तेरी हर एक उदासी मेरे खुशियाँ छीन लेती हैं। 
तेरी राखी आज भी मेरी तिजोरी में रखी हैं ,
 पर न जाने क्यों ये दिल मेरा किसी और से दुखी है। 
बहन तेरी याद आती है ,
न क्यों तेरी याद  पल सताती है। 
एक समय था जब रोते हुए  को हसाया ,
पर न जाने क्यूँ हसते हुए को रुलाया। 
बहन तेरी याद आती है। 
तू जब दूर होती हो , फिर भी मेरे पास होती हो। 
न जाने क्यों तेरी याद आती है। 
कवि: निरु कुमार, कक्षा: 9th, 
अपना घर। 

शनिवार, 23 अगस्त 2025

कविता: "वो ज़माने का एक पल"

 "वो ज़माने का एक पल"  
वो ज़माने का  एक पल ,
जिसमें  सब के सपने झूला करता था। 
 मैं भी मन ही मन फूला करता था ,  
सोच बड़ी थी और मेहनत कड़ी थी। 
फिर भी उसी रास्ते पर चलना जल्दी पड़ी ,
मुशीबत भी आ बैठी थी सिर पर। 
चलने को ना मिला कोई रास्ता ,
मैं भी यह थान लिया  करना है कुछ खास जरा  ,
वो मंजिल का एक रास्ता। 
जिसमे  पड़ा था कुछ खास जरा ,
वो ज़माने का एक पल। 
कवि: अजय  कुमार, कक्षा: 6th, 
अपना घर। 

शुक्रवार, 22 अगस्त 2025

कविता: "सपनो में खोया जहाँ"

"सपनो में खोया जहाँ"
सपनो में खोया जहाँ ,
तपती धुप की परवाह नहीं ,
सीतल हवा चली मन को छूने। 
तीर्व गति से वह बिखराती ,
निर्मल बुँदे अपनी पंखा पसार। 
सपनो में खोया जहाँ। 
गुनगुनाती वह नाजुक कलियाँ ,
बातो - बातो में कुछ कह जाती है ,
कही दूर से चली महकती हवा ,
एक नई सन्देश अभास करती है। 
सपनो में खोया जहाँ ,
तपती धुप की परवाह नहीं ,
सपनो में खोया जहाँ। 

कवि: गोपाल कुमार, कक्षा: 6th,
अपना घर। 

कविता: "कहानी जिक्र का"

 "कहानी जिक्र का"
 मैं हारा तो नहीं मगर ,
अँधेरे की छाया से, 
ताब्यात हल्की सी बेहतर से बत्तर है। 
हँस पाता हूँ आज भी मैं ,
यह जानकर सुन तौबा मेरे, 
कि फिर उग आया बड़े बड़े इरादे से मैं।  
जैसे किसी बीते जन्मो में जरूर कभी ,
न हारने की कसमे  हो खाई। 

आज भी बराबर जोश और जज्बा है। 
एक नया कहानी बोने का जिसे सुन - जान - बूझकर , 
दर चिंता और रोग आएगा। 
मेरे प्रिय शत्रु को। 

अंत तो नहीं मगर, 
कहानी दोहराने जरूरत पर लौटा। 
सुन हुकूमत साहिल को भी होगा ऊंची लहरे से। 
एक कहानी जिक्र का ,
सितारे के बीच छोड़ जाना होगा। 
 मैं हारा तो नहीं मगर ,
अँधेरे की छाया से, 
ताब्यात हल्की सी बेहतर से बत्तर है। 
कवि: पिन्टू कुमार, कक्षा: 10th,
अपना घर 

गुरुवार, 21 अगस्त 2025

कविता: "कुछ करना है"

"कुछ करना है"
 सिर पर भरी बोझ आ गया है ,
ठान लिया हूँ अब कुछ करने का। 
चला जाऊ कही और नया बसेरा में ,
मन नहीं लगता कुछ करने का। 
वापस चला जाऊ उस स्वतंत्र आकाश में ,
जहाँ कोई रोक - टोक न हो। 
मुक्त हो जहाँ इन मोटी बेड़िया से ,
जहाँ कोई रोक - टोक ही न हो। 
ठान लिया हूँ मन में एक बात जो है, बहुत खास। 
बीत गया वो दो पल मेरे लिए बन के बस राख। 
सिर पर भरी बोझ आ गया है,  
ठान लिया हूँ अब कुछ करने का। 
 कवि: मंगल कुमार, कक्षा:9th,
अपना घर। 
 

कविता: "नई सुबह"

 "नई सुबह"
कब नई सुबह आएगी ,
आज़ादी की किरणे लाएगी। 
जहाँ खुलकर सूरज चमकेगा। 
न सर किसी का झुक सकेगा ,
इंकलाब का नारा न रुक सकेगा। 
खुलकर सावन जहाँ अपनी ,
फुलवारी से देश महकाएगी। 
तब ये देश गर्व से स्वतंत्र कहलाएगा। 
जहाँ उठा शीश हिमालय विरो की गाथा गाएगा , 
से निकलकर सूर्य , एक नया सवेरा लाएगा ,
 तब देश आज़ादी पूर्व कहलाएगा। 
कब नई सुबह आएगी ,
आज़ादी की किरणे लाएगी।
कवि: सुल्तान कुमार, कक्षा: 11th, 
अपना घर। 

बुधवार, 20 अगस्त 2025

कविता: "समुन्द्र की लहरे "

 "समुन्द्र की लहरे "
कुछ ख़ास नहीं है ये लहरे।
पर उड़ते समुन्द्र में बड़ी मनभान है ये। 
उड़ते हुए पानी को चंचल बनाती है। 
जीवन में मुशिकलों से लड़ना सिखाती है ,
कही दूर उगते हुए झीतिज में सूरज,
लालिया दर्शाती है , डूबते सूरज 
को नया सवेरा लाने का सन्देश देती है। 
बदलते वक्त में बदल नहीं सकती,
हवा के वेग से लड़ नहीं सकती 
कुछ ख़ास नहीं है ये लहरे, 
अपने में ही सुलझी हुए पहली है लहरे। 
उड़ते हुए समुन्द्र की एक बड़ी पहचान है लहरे। 
कवि:  साहिल कुमार, कक्षा: 9th, 
अपना घर। 


मंगलवार, 19 अगस्त 2025

कविता: " तुम कौन हो ? "

 " तुम कौन  हो ? " 
 तुम कौन  हो ?
दुखो से दबकर जीने वाले। 
या, फिर आवाजों की दम पर लड़ने वाले। 
तुम गलत हो। 
उस मोड़ पर तुम चुप रहा जाते हो,
अनजान की तरह मुँह मोड़ लेते हो। 
तुम कौन हो। 
यह सब देखकर,
 या, अपनी बातो को रखने वाले ,
तुम आगे चलो अपने हक के लिए। 
यह समाज तो निचा दिखाएगा ही। 
उनकी रहो पर मत चलो।  
 तुम कौन हो ?
जिन्दा होते हुए भी मुर्दा बन जाते,
या फिर दुखो से दबकर जीने वाले। 
गलत का साथ देने वाले। 
या गलत होने से रोकने वाले ,
 तुम कौन हो ?
हर बुराइयाँ को सहने वाले। 
या, उसे अनजान बने सुनते वाले। 
तुम कौन हो  ?
कवि: अमित कुमार, कक्षा: 11th,
अपना घर। 

सोमवार, 18 अगस्त 2025

कविता: "ए आसमा कब मुस्कुराएगा"

"ए आसमा कब मुस्कुराएगा"
 ए आसमा कब मुस्कुराएगा ,
अंधूरे जंग में नया सवेरा लाएगा ,
 ए आसमा कब मुस्कुराएगा। 
कबतक उम्र जावा रहेगी ,
अपने पैर कभी  कभी डग डगमाएगी ,
इन कंगाली की रहे पर। 
 कुर्ते और पयजामों संग ,
शोषद की डगरहो पर चलेगा। 
समाज से कब  दीवारों को गिराएगा ,
 ए आसमा कब मुस्कुराएगा। 
 जब सबको बराबर जीने का हक़ होगा ,
सवालों के अपने जवाबो पर गर्व होगा ,
इस राह का इन्तजार पर गर्व होगा ,
उम्र तब जावा रहना क्योकि कल ए आसमां मुस्कुराएगा। 
खुशियों की नई बौछार लाएगा ,
हर किसी की खुशुयो की बहार लाएगा ,
मुस्कुराहटो की नई उमंग लाएगा ,
उम्र तब तक जावा रहना ,
क्योकि आसमां कल मुस्कुराएगा। 
 ए आसमा कब मुस्कुराएगा .... ।। 
कवि: साहिल कुमार, कक्षा: 9th,
अपना घर। 

रविवार, 17 अगस्त 2025

Poem: "Apna Ghar "

 "Apna Ghar "
Apna Ghar was started in 2006,
present day the number of students is 36.
aim is for migrant children educational development,
so, they can take journey from hurts to compartment.
students live together, eat together, 
play together and go to School together,
in any situation they get gather,
they face the situation together.
but they live together.
they have self-rule and regulation,
we run the hostel just like a nation. 
student from Bricklin and constructed sites,
where for the basic life they have to fight.
 Apna Ghar was started in 2006,
present day the number of students is 36.
Poet: Pankaj Kumar, class: 10th 
Apna Ghar.

शुक्रवार, 15 अगस्त 2025

कविता: " वीर योद्धा "

 " वीर योद्धा  "
 वीरो कि क्या तारीफ करूँ ,
जो हँसाना हँसाना फाँसी पर झूल गए। 
डरे नहीं वो मौत से ,
शेर बनकर दहाड़ गए। 
बिन गोली हथियार से फिरंगियो से वो जूझ गए। 
एक नहीं सौ - सौ को अकेले ही पछाड़ गए। 
स्वपन रहा आजादी का बचपन से ,
उस स्वपन को साकार गए। 
डरे नहीं फिरंगियो से ,
मौत के सामने सीना तान खड़े , 
इंकलाब का नारा बोल  गए।  
क्या तारीफ करूँ वीरो की ,
जो हँसाना - हँसाना फाँसी पर झूल गए। 
सभी को मेरे तरफ से " इंडिपेंडेंस डे " की हार्दिक सुभकामनाये।  
कवि: साहिल कुमार, कक्षा: 9th, 
अपना घर 

गुरुवार, 14 अगस्त 2025

कविता: "बरसता का महीना"

 "बरसता का महीना" 
इस मौसम  का क्या कहना है,
गर्मी को कैसे सहना है। 
सूर्य का यह प्रकश,
कर दे रही है पसीना का बरसात।
चारो और फैली सूर्य का प्रकाश,
 इसी प्रकाश से ही रहा है गर्मी का अहसास।
इस कड़क धुप से ,
मुश्किल कर दिया बाहर आना - जाना 
इस मौसम  का क्या कहना है ,
गर्मी को कैसे सहना है। 
कवि: नसीब कुमार, कक्षा: 3rd,
अपना घर। 

कविता: "सूरजदेव अहिया "

 "सूरजदेव अहिया " 
 फिर से अहिया ,
देर नय करिहा कहेले कि। 
सोबल नय जा हको करि रतिया में। 
करवटिया ले हकियो  तो ,
अखिया मूंदे में डरो हकियो। 
कहो कि एक बेरी सोबे पर ,
उपबन कि नय उठबन जल्दी। 
जेकर खातिर हमराले ,
तोहार उगल मुखड़ा के। 
देखले बड़ी देर हो जितो। 
हे! सूरजदेव सुनली। 
तुरंते अहिया देर नय करिहा। 
उगिहा रोज भोरे - भोरे ।।
कवि: पिंटू कुमार, कक्षा: 10th, 
अपना घर। 

कविता: "बारिश"

 "बारिश" 
 बरसात का मौसम है आया। 
चारो तरफ बरस रही वर्षा रानी।
कर दिया है अब जगह पानी ही पानी। 
बरस रहा है बरसा रानी। 
बचे बोलते हम पानी में नहाएगे
भैया सभी को डॉट लगाते ,
बुँदे है जैसे मोती , बचे देख इतराते। 
बरसात का मौसम है आया। 
चारो तरफ बरस रही वर्षा रानी।
कवि: नितीश कुमार, कक्षा: 6th,
अपना घर। 

  

बुधवार, 13 अगस्त 2025

कविता: "नन्हा तारा "

"नन्हा तारा " 
 आसमान का एक तारा हूँ। 
नन्हा और सबसे प्यारा हूँ। 
जगत की एक उम्मीद हु। 
सबके दिलो से नाता है। 
प्रकाश की एक किरण हुँ। 
आसमान का एक तारा हूँ। 
 सबसे अनोखा और प्यारा हूँ। 
है एक अँधेरी रातो की ,
जलता हुआ प्रकश का दीपक हूँ  
 आसमान का एक तारा हूँ। 
नन्हा और सबसे प्यारा हूँ। 
कवि: नीरज कुमार, कक्षा: 5th,
अपना घर। 

कविता: " माँ "

 " माँ "
खो जाता हूँ उन यादो में।  
उसकी ख्वाबो और बातो में। 
हाथ फेर कर  गाती थी वो लोरी , 
मैं सो जाऊ इस लिए वो ,
करती थी अपनी नींद से चोरी। 
माँ कि ममता कुछ इसी तरह बतलाती है। 
 बच्चा था मई बस ये ही समझती थी। 
कवि:  निरंजन कुमार, कक्षा: 9th,
अपना घर। 

मंगलवार, 12 अगस्त 2025

कविता: "माँ तेरी याद आज भी आती है"

"माँ तेरी याद आज भी आती है"
माँ तेरी याद मुझको बहुत सताती है। 
इतना ही नहीं रोज रुलाती है। 
 सोते समय मेरी सपनो में आती हो।  
माँ तेरी याद मुझको बहुत सताती है। 
मुझको तेरे पास आने का मन , 
तो बहुत करता है लेकिन ,
 मैं आ नहीं सकता ,
लेकिन सपनो में खोया ,
हुआ सपना मैं खो नहीं सकता। 
माँ तेरी याद मुझको बहुत सताती है। 
तेरी वो रत की कहानिया बहुत याद दिलाती है। 
तेरी वो चूड़ी की खान - खान की ,
आवाज आज भी आती है। 
माँ तेरी याद मुझको बहुत सताती है। 
कवि: विष्णु कुमार, कक्षा: 6th,
अपना घर।  

Poem: "Small Steps, Big Impact"

 

  "Small Steps, Big Impact"  
Simple win is more beautiful.
Sometimes it revive internal soul.
Small steps have move patience 
It create path to go through it.
Without getting our destiny
Impossible for simple win,
In a dramatic world,
Everyone ignore your small success,
But, simple win is more beautiful.
Sometime it revive internal soul.
Glimpse around yourself deeply.
No one aware of simple win.
Everyone want big achievement or success,
But no one try to start from small step,
But, simple win is more beautiful.
Sometime it revive internal soul . 
Poet: Amit Kumar, class: 11th.
Apna Ghar.
 

कविता: " चलो कुछ सीखेंगे "


" चलो कुछ सीखेंगे "
चलो - चले ये किताबो की संसार में। 
कुछ जानेगे तो कुछ सीखेंगे ,
पहचानेगे / समझेंगे इस संसार को। 
निकले है घूमने की तलाश में ,
देखेंगे हर तरह के तारे। 
ढूंढ लेंगे ये तारो को आसमान में ,
बहुत कुछ है इस संसार में। 
चलो इस दुनिया / संसार से प्यार करे ,
और जान जाऐंगे ये पूरा जग - संसार।  
किताबो पड़ने के प्यास में ,
चलो - चले किताबो की संसार में। 
कुछ सीखेंगे , उच्च जानेगे ,
जान जाऐंगे ये पूरा जग - संसार। 
कवि: नीरज कुमार, कक्षा: 5th, 
अपना घर। 

सोमवार, 11 अगस्त 2025

कविता: " वर्षा "

" वर्षा "
 रिमझिम वर्षा बरस गई ,
कच्ची पगडंडी की रस्ते को भी ,
हर कदम - कदम सींच गई। 
झींगुर की झंकार ,
मेढक की टर्र टर्र भी ,
शाम - सुबह तक खूब गूंजी। 
घर की आंगन में ,
तो कभी खेत - खलियान में ,
पानी की पतली धारा के संग। 
केचुएँ अंगणित मिले ,
वर्षा में धरती से उठती भाप से ,
भीगी मिट्टी की गर्म भी ,
पुरे वातावरण में धुल मिल गई। 
गरदे से देखते फ़िस्सर सरे पेड़ - पौधे ,
चुटकी में चम् उठी ,
झुकी - झुकी डाकियो में ,
नए नवीन पत्ते भी ,
अपने असली रंग में पाए। 
कड़कती धुप से बेताब ,
 मुरझाई साग - सब्जियाँ व मिठे फल , 
अब देखने में तंदरुस्त हो गई। 
जल से भरे तालाब में मेढक ,
प्यासे - पशु - पक्षी का भी ,
अब प्यासा जड़ से उजाड़ गए। 
वर्षाऋतु के आते ही ,
सुखी जमीं को जान मिल आई। 
रिमझिम वर्षा बरस गई ।।
कवि: पिंटू कुमार, कक्षा: 9th,
अपना घर। 

कविता: " मुश्किल हुए दिन "

 " मुश्किल हुए दिन "
गर्मी का मौसम आया,
सूरज ने आँखे दिखलाई। 
चमके सरताज जोर जोर से ,
दिनभर गर्मी फैलाये जोर से, 
गर्मी का आया मौसम। 
इस मौसम में ठंडी चाहिए ,
जो रहता पहुँचाए ऐसी हवा चाहिए ,
लपट चले पुरे दिन भर। 
लू ने भी की अपनी हरकत,
करा बीमार लोगो को, 
अब कुछ न सुझा उनको। 
गर्मी का आया मौसम ,
सूरज ने आँखे दिखलाऐ। 
कवि: साहिल कुमार, कक्षा: 9th,
 अपना घर। 

कविता: " गर्मी से साथ मजे "

 " गर्मी से साथ मजे "
 आज के मौसम में कुछ बदलाव है ,
कभी धुप तो कभी छाया है। 
हवा का नामो निशान नहीं है, 
आज के मौसम में कुछ बदलाव है। 
बहार निकालो तो कड़क धुप  ,
भीतर आओ तो छाया। 
कूलर - पंखा की हवा से ,
दूर हो जाता है तनाव। 
लगाई हिमालय ठंडा तेल ,
फिर आप देखेंगे उसका खेल ,
लगा के देह में कूल पाउडर ,
दूर भगाया गर्मी का दर.
सिर दर्द से रहत पाए ,
इसलिए हिमालय ठंडा तेल लगाए। 
ठंडा - ठंडा, कूल - कूल हो जाए।
कवि: मंगल कुमार, कक्षा: 9th,
अपना घर।   

Poem: " Fun with Math's"

 " Fun with Math's"
 the given figure is Triangle,
we need to find area and angle.
Hypotonus is the longest side of Triangle, 
the given is 90-degree angle.
sum of side is four perimeters,
one by two, base * height is Formula,
for area of Triangle.
the given figure is of 3 sides and 3 angle, 
Pizza is shape of Triangle. 
 the given figure is Triangle,
we need to find area and angle.
Poet: Pankaj Kumar, class: 10th,
Apna Ghar. 

कविता: " मजे में थी जिन्दगी "

 " मजे में थी जिन्दगी  "
कभी - कभी सोचता हूँ सब खत्म हो गए। 
ये खुशी की पहाड़ कही गम हो गए। 
इतनी फुरसत नहीं है अब अपने आप को, 
जो देख सके बीते हुए सपने को। 
वो मस्त बचपन खेल रहा था आँगन में, 
क्या कभी लौट पाएगा वो समय बचपन में ? 
जब बेफिक्र होकर घूमता था। 
इस परेशानियों से दूर ,
जिन्दगी अपनी जीता था। 
तब दुख नहीं था कुछ खोने का ,
अब दुख है कुछ पाने का। 
कभी - कभी सोचता हूँ सब खत्म हो गए। 
ये खुशी की पहाड़ कही गम हो गए। 
कवि: निरु कुमार, कक्षा: 9th,
अपना घर। 

रविवार, 10 अगस्त 2025

कवित: " गर्मी का आक्रमण "

 कवित: " गर्मी का आक्रमण "
पोछ  पोछ पसीना, 
हय! मई तो बेदम हुआ । 
सिर पर तारे मांडाराते  सार,
हय! मई तो चकरा गया । 
क्या बताऊ यार मेरे मई,
मई तो इस गर्मी से बौखाला गया । 
लगे जैसे सिर पर गोला आग का,
नजर मारते ही तुरंत,
हय! मेरे दिमाग की बत्ती बूज गया, 
आई बिजली भी न जाने क्यों ?
तुरंत ही चली गई । 
इस गर्मी से क्या बतलाऊ भाई मेरे, 
पसीना से मई लत पैट हुआ...... ।
कवि: पिंटू कुमार, कक्षा: 10th, 
अपना घर ।  

कविता: " भाई - बहन का त्योहार "

 " भाई - बहन का त्योहार " 
मेरी प्यारी लाडली बहाना , 
तेरी राखी लगे जैसे कोई गहना । 
सारा प्यार एक धागो में बांधा ,
तुमने भाई को प्यार दिया ,
वो एक उपहार है , 
लगे जैसे फूलो की बौछार है। 
 मेरी प्यारी लाडली बहाना , 
तेरी राखी लगे जैसे कोई गहना। 
एक राखी से सारा संसार बंधा है । 
उस राखी ने भाई की कलाई को सजाया , 
हर एक चहरे पर मुस्कान लाया । 
 मेरी प्यारी लाडली बहाना , 
तेरी राखी लगे जैसे कोई गहना ।  
कवि: निरु कुमार, कक्षा : 9th,
अपन घर ।  
 

 

 

 

कविता : " रक्षाबंधन "

 " रक्षाबंधन " 
 ये है रक्षाबंधन है त्योहार ,
भाई -बहन का है प्रेम ,
बहने बांधती है प्रेम के धागे,
भाई बहन को देते है हजारो का उपहार। 
ताकि जुड़ा रहे भाई बहन का प्यार ,
ये है रक्षाबंधन का त्योहार ,
हर साल बांधती है ये प्रेम के धागे। 
ताकि भाई बहन भूले न प्यार ,
ख़ुशी से , भाई - बहन मनाते है ये त्योहार ,
भाई बहन का है प्यार ,
ये है रक्षाबंधन का त्यौहार ,
ये है रक्षाबंधन का त्योहार । 
कवि: नवलेश कुमार, कक्षा: 11th,
अपना घर  

शुक्रवार, 1 अगस्त 2025

कविता: " मंजिल पाओगे "

 " मंजिल पाओगे "
 यूँ न बैठ उदास होकर , 
अभी जिंदगी के कई जंग बाकी है ,
एक जंग ही तो प्रविजय हुआँ है। 
तू अगले  युद्ध की तयारी कर ,
थोड़ा मेहनत और होशियार कर ,
अबकी बार जंग जित लेंगे हम। 
जिंदगी का एक जंग 
यूँ न छोड़ अपने सपने को अधूरी , 
 यूँ भूल न अपने परिजनों को ,
हिम्मत , जूनून  और जोश है वो ,
जरा अपनी आँखो और दिमांग खोल ,
अपनी जिंदगी की कई रस्ते खेल।।
कवि: पंकज कुमार, कक्षा: 10th, 
अपना घर।