शुक्रवार, 31 अक्टूबर 2025

कविता: "Sunday"

"Sunday" 
सुबह सूरज आसमान से निकला,
मेरा आँख किसी  गुड मॉर्निंग कहने पर खुला। 
फेका चददर बेड पर छोड़ छोड़ भागा ,
मंजन किया नास्ता नहीं मैंने खाना खाया। 
बाल कटवाया दोपहर मे लंच के पहले ,
खाना खाने भागा मेस के के अंदर ,
पेट भर गया मेरा बैगन का भर्ता खाकर। 
कविता है ये मेरा पूरा तो नहीं हो होगा कभी। 
कोशिश तो यही रहेगी मेरे ,
हो सपना सब का पूरा। 
कवि: रमेश कुमार, कक्षा: 5th,
अपना घर। 

कोई टिप्पणी नहीं: