"Sunday"
सुबह सूरज आसमान से निकला,
मेरा आँख किसी गुड मॉर्निंग कहने पर खुला।
फेका चददर बेड पर छोड़ छोड़ भागा ,
मंजन किया नास्ता नहीं मैंने खाना खाया।
बाल कटवाया दोपहर मे लंच के पहले ,
खाना खाने भागा मेस के के अंदर ,
पेट भर गया मेरा बैगन का भर्ता खाकर।
कविता है ये मेरा पूरा तो नहीं हो होगा कभी।
कोशिश तो यही रहेगी मेरे ,
हो सपना सब का पूरा।
कवि: रमेश कुमार, कक्षा: 5th,
अपना घर।
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