शनिवार, 25 अक्टूबर 2025

कविता: "ठंडी का ये मौशम है आया"

 "ठंडी का ये मौशम है आया"
 जागो मेरे साथियो अब समय है ठंडी का,
उठाओ अपनी अपनी  कम्बल और रजाई ,
अब तो रात भी होने लगी है बड़ी ,
ऐसा लगता है अब धीमे हो गए है घड़ी। 
अब तो शाम भी जल्दी हो रहे है ,
मोती जैसे ओस भी गिर रहे है। 
मैदानों में और खेत खलियान में ,
हो रहा है अब देर से सुबह रात अब जल्दी ,
जागो मेरे साथियो अब समय है ठंडी का ,
ये मौशम है आया ठंडी का। 
गरम गरम होगा अब खाना ,
सुनेंगे रातो को मजे से गाना। 
कवि: नीरु कुमार, कक्षा: 9th,
अपना घर। 


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