"ठंडी का ये मौशम है आया"
जागो मेरे साथियो अब समय है ठंडी का,
उठाओ अपनी अपनी कम्बल और रजाई ,
अब तो रात भी होने लगी है बड़ी ,
ऐसा लगता है अब धीमे हो गए है घड़ी।
अब तो शाम भी जल्दी हो रहे है ,
मोती जैसे ओस भी गिर रहे है।
मैदानों में और खेत खलियान में ,
हो रहा है अब देर से सुबह रात अब जल्दी ,
जागो मेरे साथियो अब समय है ठंडी का ,
ये मौशम है आया ठंडी का।
गरम गरम होगा अब खाना ,
सुनेंगे रातो को मजे से गाना।
कवि: नीरु कुमार, कक्षा: 9th,
अपना घर।
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