मंगलवार, 14 अक्टूबर 2025

कविता : "बस एक मुस्कान दे बहिन"

  "बस एक मुस्कान दे बहिन"
सब कुछ था ठीक, सब कुछ था प्यारा,  
हर दिन था जैसे कोई त्योहार हमारा।
 फिर एक दिन आई वो खामोशी की आंधी, 
ना जाने क्यों हो गई बातों में बंदी।
तेरी चुप्पी अब दिल को चुभती है, 
तेरे बिना हर खुशी अधूरी लगती है। 
तेरे बिना ये घर भी सूना लगता है, 
तेरी हँसी ही तो थी जो सबको जगाता है।
तेरा जन्मदिन है आने वाला,
 मैं दूँगा तुझे सबसे बड़ा तोहफ़ा निराला। 
ना कोई चीज़, ना कोई सामान, 
बस एक बार दे दे अपनी मुस्कान।
जो भी गलती हुई, मुझे माफ़ कर दे, 
तेरे बिना ये दिल अब तन्हा सा रह गया है।
मैं तुझसे फिर से बात करना चाहता हूँ, 
तेरे बिना अब जीना नहीं आता है।
कवि: नीरज कुमार II, कक्षा: 5th, 
अपना घर।  

कोई टिप्पणी नहीं: