रविवार, 12 अक्टूबर 2025

कविता: "तबाही"

 "तबाही"
तड़ा - तड़ हुआ गोला बारुद,
झाड़ - झाड़ हुआ गोलियों की बरसात। 
जो भी आमने - सामने आया ,
मौत को वो गले लगाया। 
जैसे - तैसे जी जान लगाया जिन्दा रहने के लिए , 
सब संम्पतियो को छोड़ - छाड़ आया ,
है! बेतहारना छोड़ा और भागा 
मगर कैसे ये हो पाता संभव कोई वहाँ से बच निकलता ,
चाहे कर लेते वो भी अगर लाखो कोशिश ,
फिर भी कुछ नहीं वो कर पाते। 
तड़ा - तड़ हुआ गोला बारुद ,
झाड़ - झाड़ हुआ गोलियों की बरसात।
कवि: पिन्टू कुमार, कक्षा: 10th,
अपना घर।  

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