"नींद आ रहा था"
मन की गहरी छत में किताब लिए पढ़ रहा था।
खोया मेरा नाजुक दिल , खली,
और रुवासा चेहरा मी साथ था।
आगे के प्रश्न धुंधली और कठिनाई से उभर रहा था।
मन थोड़ा परेशान था मगर दिल में ,
न हार माने का जीगर था
पर उसी समय मेरा पूरा शरीर सिमट कर हार रहा था,
आँखे मानो ज्वाला से जल रहा हो।
सच्च बताऊ दोस्तों।
ये सब सिर्फ निंदा में होता है।
कवि: निरंजन कुमार, कक्षा: 9th
अपना घर।
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