"मेरा अधूरा सपना "
सुबह हो गयी , दोपहर हो गयी, और शाम भी हो गयी।
अब बैठे - बैठे समय कट रहा है।
इस बिच रत भी हो गई है।
जब अंदर गया तो नींद आ गयी,
जब सोया तो सपनो में खोया,
एक अन बेसुनि सी आवाज से नींद खुली
सपना टूटने की वजह से मैं खूब रोया,
दूर जाती रही वो आवाज पीछा करती रही।
जब तक उसने मेरी नींद खराब नहीं,
कर दिया तब तक उसे चैन न रही।
घूमता - फिरता मस्ती मैं चलता,
गिरता - संभलता रहो में चलता,
सुबह से शाम कब हो गयी।
कवि: मंगल कुमार, कक्षा: 9th,
अपना घर।
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