"मुझे अकेला ही रहने दो"
क्यों छीन रहे हो मेरी खुसी मुझसे,
क्या हमसे कोई नाराजगी है।
अरे जीने दो जिंदगी मुझे अपनी तरह,
इसमें क्या कोई बुराई है.
हर वक्त रुकावट दी आपने,
जो मेरे तक ही रहती है।
है कभी पूछा आपने हमसे,
की मेरे मन में क्या रहती है।
कभी घूम ले बाहर जाके,
पर आपकी नहीं मर्जी है।
घुटन हो रही है मुझे आपसे ,
या फिर आप में ही कोई बुराई है।
रहने दो बस अब इतना,
अब आगे की जिंदगी मेरी है।
कवि: सुल्तान कुमार, कक्षा: 11th,
अपना घर।
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