"दिवाली"
इस खुशियाँ की त्यौहार में,
हम अनजान सा बने घूम रहे है।
सभी खुश है, मुस्कुरा रहे है ,
और हम यहाँ गप्पे - सप्पे लड़ा रहे है,
नीचे पटाके फूट रहे है,
तो कुछ चकरी से खेल रहे है,
और हम उपर बैठे है,
झिलमिलाते आसमा को देख रहे है ,
हर तरफ से पटाके की आवाज नीचे बच्चो की शौर,
पर किया करे झिलमिलाहट ,
को देख देख कर रहे है बोर।
इस खुशियाँ की त्यौहार में ,
आसमान को देखकर ही मजे ले रहे है।
कवि: गोविंदा कुमार, कक्षा: 9th,
अपना घर।
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