"ठंडी"
आ गया देखो सर्दी का मौशम,
सुबह सुबह मौशम लगता है औसम।
चारो ओर कोहरा ढक लिया सबके ,
नहाने का मन नहीं करता,
सुबह की वो अच्छी सी नींद खराब नहीं करना चाहता हूँ।
खिड़की से जब बहार देखो अंधेरा ही अंधेरा ,
न जाने इस बार कैसी ठंडी होगी ,
ये मौशम पल पल भर में बदलता है।
कवि: अजय कुमार II, कक्षा: 6th,
अपना घर।
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