बुधवार, 29 अक्टूबर 2025

कविता: "ठंडी"

"ठंडी" 
आ गया देखो सर्दी का मौशम,
सुबह सुबह मौशम लगता है औसम। 
चारो ओर कोहरा ढक लिया सबके ,
नहाने का मन नहीं करता, 
सुबह की वो अच्छी सी नींद खराब नहीं करना चाहता हूँ। 
खिड़की से जब बहार देखो अंधेरा ही अंधेरा ,
 न जाने इस बार कैसी ठंडी होगी ,
 ये मौशम पल पल भर में बदलता है। 
कवि: अजय कुमार II, कक्षा: 6th,
अपना घर। 

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