शुक्रवार, 31 अक्टूबर 2025

कविता: "Sunday"

"Sunday" 
सुबह सूरज आसमान से निकला,
मेरा आँख किसी  गुड मॉर्निंग कहने पर खुला। 
फेका चददर बेड पर छोड़ छोड़ भागा ,
मंजन किया नास्ता नहीं मैंने खाना खाया। 
बाल कटवाया दोपहर मे लंच के पहले ,
खाना खाने भागा मेस के के अंदर ,
पेट भर गया मेरा बैगन का भर्ता खाकर। 
कविता है ये मेरा पूरा तो नहीं हो होगा कभी। 
कोशिश तो यही रहेगी मेरे ,
हो सपना सब का पूरा। 
कवि: रमेश कुमार, कक्षा: 5th,
अपना घर। 

गुरुवार, 30 अक्टूबर 2025

कविता: "बर्थडे"

"बर्थडे"
 आज का दिन है बहुत खास,
होगी बर्थडे केक का ही बरसात। 
साल में एक बार आता है ,
सारा का सारा खुशियां  ले जाती है। 
सारा दिन मुस्कुराते हुआ ही गुजरता ,
सॉस लेने का मौका भी नहीं मिलता की बर्थडे।
 की बधाईंया मिलना सुरु हो जाता है ,
आज का दिन है बहुत खास। 
कवि: नसीब कुमार, कक्षा: 3rd,
अपना घर। 

 

बुधवार, 29 अक्टूबर 2025

कविता: "ठंडी"

"ठंडी" 
आ गया देखो सर्दी का मौशम,
सुबह सुबह मौशम लगता है औसम। 
चारो ओर कोहरा ढक लिया सबके ,
नहाने का मन नहीं करता, 
सुबह की वो अच्छी सी नींद खराब नहीं करना चाहता हूँ। 
खिड़की से जब बहार देखो अंधेरा ही अंधेरा ,
 न जाने इस बार कैसी ठंडी होगी ,
 ये मौशम पल पल भर में बदलता है। 
कवि: अजय कुमार II, कक्षा: 6th,
अपना घर। 

सोमवार, 27 अक्टूबर 2025

कविता: "वो आखरी घर"

"वो आखरी घर" 
गाँव का वो आखरी घर 
जहाँ खामोशी, हमेशा बरकरार है 
किस खौफनाक मंज़र मे है 
जहाँ बस अजीब सी नजरे हट गई 
खुशियों की लड़ी गायब  हो गई 
बसेरा बन गया काली परछायो का 
अब घर बन गया इन बुराइंयो का 
कितने वर्षो से यहाँ खुशियाँ नहीं ठहरी 
इसकी गलियों में कब से लोगो की यादे नहीं लौटी 
सुने आँगन में कलियाँ नन्ही खिली 
लिखा मौन उस घर के लिए, मगर 
गाँव के आखरी घर में दुबारा खिशियाँ नहीं लौटी 
कवि: साहिल कुमार, कक्षा: 9th, 
अपना घर 

रविवार, 26 अक्टूबर 2025

कविता: "दिवाली"

"दिवाली"
इस खुशियाँ की त्यौहार में,
हम अनजान सा बने घूम रहे है। 
सभी खुश है, मुस्कुरा रहे है ,
 और हम यहाँ गप्पे - सप्पे लड़ा रहे है, 
नीचे पटाके फूट रहे है, 
 तो कुछ चकरी से खेल रहे है, 
और हम उपर बैठे है,
झिलमिलाते आसमा को देख रहे है ,
हर तरफ से पटाके की आवाज नीचे बच्चो की शौर, 
पर किया करे झिलमिलाहट ,
को देख देख कर रहे है बोर। 
 इस खुशियाँ की त्यौहार में ,
आसमान को देखकर ही मजे ले रहे है।
कवि: गोविंदा कुमार, कक्षा: 9th,
अपना घर।  

कविता: "याद कर लेता हूँ"

 "याद कर लेता हूँ"
 वैसे वो मेरी आदत नहीं फिर, 
भी याद कर लेता हूँ। 
आजकल मैं बातो को भूलने लगा हूँ, 
फिर भी याद करने की कोशिश कर लेता हूँ। 
वो सभी बाते जो निराले थे,
वो भी बाते जो महीनो पुरानी थी। 
वो सारे किस्से जो मिलकर सुनाए थे,
वो सभी चीज जो हम मिलकर सीखे थे।  
जिसने पूरा का पूरा वक्त दिया,
वो सारे राज उसने खोल दिया। 
भरोसा कर के साथ वो रह गई,
वक्त आने से पहले ही निशानी दे गई। 
वैसे तो मेरी आदत नहीं फिर,
भी याद कर लेता हूँ। 
कवि: नीरु कुमार, कक्षा: 9th, 
अपना घर। 

शनिवार, 25 अक्टूबर 2025

कविता: "ठंडी का ये मौशम है आया"

 "ठंडी का ये मौशम है आया"
 जागो मेरे साथियो अब समय है ठंडी का,
उठाओ अपनी अपनी  कम्बल और रजाई ,
अब तो रात भी होने लगी है बड़ी ,
ऐसा लगता है अब धीमे हो गए है घड़ी। 
अब तो शाम भी जल्दी हो रहे है ,
मोती जैसे ओस भी गिर रहे है। 
मैदानों में और खेत खलियान में ,
हो रहा है अब देर से सुबह रात अब जल्दी ,
जागो मेरे साथियो अब समय है ठंडी का ,
ये मौशम है आया ठंडी का। 
गरम गरम होगा अब खाना ,
सुनेंगे रातो को मजे से गाना। 
कवि: नीरु कुमार, कक्षा: 9th,
अपना घर। 


शुक्रवार, 24 अक्टूबर 2025

कविता : "वॉलीबॉल टूर्नामेंट्स"

"वॉलीबॉल टूर्नामेंट्स" 
आज था Altair  और allies  का final,
दोनों टीम थी आगे की ओर ,
 लगा रहे थे सभी अपनी ओर जोर ,
कौन होगा वॉलीबॉल का हक़दार। 
पहली पारी तो सुरु ही हुआ था टीम अटलाइर ने गवा बैठा पॉइंट, 
allies धीरे धीरे आगे बाद कर ऊपर आया ,
Altair को कई पॉइंट्स से पीछे छोड़ आया। 
पहली पारी तो  था allies वालो ने ,
दूसरी की कोशिश थी Altair  वालो की पर ,
चूक गए कुछ कमी की वजह से  न हाथ आया वि भी ,
और इसी के साथ ले गया final को अपनी ओर। 
कवि: नीरु कुमार, कक्षा: 9th,
अपना घर। 

गुरुवार, 23 अक्टूबर 2025

कविता: "कभी अकेले रहना सीखो"

 "कभी अकेले रहना सीखो"
कभी अकेले रहना सीखो।  
आपको भी पता चलेगा अकेला पन क्या होता है ?
जो उदास हो या नाराज़ हो किसी से,
उनसे उनकी परेशानी क्या पूछ सकते हो,
वो बताने भी झिझक कर बात करेगा तुमसे। 
हो सके तो उसे अकेला रहने दो उस पल ,
दो पल ही सही पररहने कुछ पल के लिए उनको ,
कभी अकेला रहना सीखो। 
मन की बता को जानो कभी ,
उनकी सकल को जानो,
बीन देखे सवाल मत। 
 अकेला रहना सीखो । 
कवि: संतोष कुमार, कक्षा: 10th, 
अपना घर। 

मंगलवार, 21 अक्टूबर 2025

कविता: "हमारे संग के बच्चे"

"हमारे संग के बच्चे"
 हमने भी काम किये है ईट भठ्ठो पर,
ईटो की दीवार खड़े किये है,
अपने इन नन्हे हाथे से, अकार देखर बनाई है,
जलते आग में से ईटो को निकाला है,
इन हाथो की लकीरे भी मिटने लगी है,
अब ये जंजीरे भी टूटने लगी है। 
खड़ा कर दिया है बड़े - बड़े इमारते,
जिसका सामना करना मुमकिन था,
याद है आज भी मुझे जब जलते आग से ईटे को निकलता था,
हाथ में पड़ गए थे छाले, हाथ में पड़ गए थे छाले,  
पर हौसले अब भी थे निराले।  
धूप में जलते रहे कदम,  
सपनों ने फिर भी थामा दम।  
हर ठोकर ने कुछ सिखाया,  
हर आँसू ने रास्ता दिखाया।  
अब मंज़िल दूर नहीं लगती,  
क्योंकि मेहनत कभी खाली नहीं जाती।
 सारा का सारा बचपन तो पथाई से गुजरा है,
 जलते सूरज, तपती धुप से गुजरा है।  
उनको नहीं पता किया होता है जाट - पात का लेन देन,
उन्हें तो सिर्फ पढ़ाई चाहिए, एक नई जिंदगी के लिए। 
वे बड़ी - बड़ी इमारते जब दिखती है उन्हें, 
दिल की धरकने को हिला देने वाली काम करती है,
न जाने कियु उसे देख बेचैनी सी लगती है। 
खाने को खाना नहीं पीने को साफ़ पानी नहीं, 
जीने को कोई और जिंदगी नहीं है। 
झूझ रहे है कई लोग इस परेशानी से होक बर्बाद ,
जिंदगी उनकी भी चल रही है,जब तक है वो अवाद। 
 हमने भी काम किये है ईट भठ्ठो पर ,
ईटो की दीवार खड़े किये है।
तमाम ख्वाब अपने भी देखे होंगे पर कुछ हमारे भी है, 
अपनी इस ख्वाब को लेकर,
आपके साथ जीने की चाह भी  रखते है। 
 हमने भी काम किये है ईट भठ्ठो पर,
खड़ा कर दिया है बड़े - बड़े इमारते। 
कवि: नीरु कुमार, कक्षा: 9th,
अपना घर।  

कविता: "गाँव का वो आखरी घर"

 "गाँव का वो आखरी घर"
जहाँ दुनियाँ मना रही है दिवाली, 
उस गाँव की आखरी घर से पूछो जिसके, पास नहीं है पीने को पानी। 
खुशी भी सही से मना नहीं पा सकते वो ,
जो हो सकता है वो सब कुछ करते है अपने बच्चे के लिए,  
मिठाई से लेकर पटाके तक भी लेकर देते है उनके लिए। 
खुद परेशान रहकर भी अपने बच्चे को खुश,
रखने की छमता रखते है अपने अंदर ,
अपनी दुखी को अलग कर के उनके साथ खुशी से रहते है, 
गाँव का वो आखरी घर। 
की दुखी में भी खुशी छिपी हुई है,
कुछ नहीं तो थोड़ा ही सा ही पर पटाके लाते  है ,
दिये भी लाते है , पूजा भी करते है पर ,
उनका रोज का खाना वही होता है। 
उसमे भी वे खुशी से रहते है, खा - पीके सपने भी देख लेते है ,
मेहनत वो भी करते है हर त्यौहार को अच्छे से मनाने के लिए पर ,
उनकी भी मज़बूरी है काम भी जरुरी है । 
जहाँ दुनियाँ मना रही है दिवाली, 
वे झेल रहे अपनी परेशानी। 
जहाँ दुनियाँ मना रही है दिवाली। 
कवि: नीरू कुमार, कक्षा: 9th,
अपना घर 


सोमवार, 20 अक्टूबर 2025

कविता : "दीपावली "

"दीपावली "
 आ गई है दिवाली।
बच्चो की खुशी और  पटाको की आवाज आएगी।   
घरो को सफाई और तरह - तरह के लइटो से सजाएँगे। 
बच्चे धूम धाम से दीवाली मनाएँगे। 
दिए को जलाएँगे खुशियाँ सभी को बाटेंगे  आएँगे। 
की जब पटाके फूटेंगे गाँव की गलियों में, देवरो पर पॉप - पॉप मारेंगे। 
हैप्पी दिवाली सभी के लिए लिख देंगे दीवारों पर। 
वे सोर जब होंगी गाँव की गलिओं में। 
वे पटाके की जब आवाज सुनाई देंगी लोगो की। 
ताल में ताल मिलाने लग जाएँगे साथ में। 
खुशियाँ बाटेंगे साथ में। 
कवि = रमेश कुमार 
कक्षा = 5 
अपना घर 

शनिवार, 18 अक्टूबर 2025

कविता: "पी. टी. यम. का दिन आया"

 "पी. टी. यम. का दिन आया"
हुआ है हम सभी का आज पी. टी. यम.,
देखने को मिले है नए रैंक होल्डर्स ,
जो होता आ रहा है हर वर्ष।  
सभी के चेहरे पर खुशी ही खुशी थी ,
कुछ की चेहरे पर छाए हुई थी दुखी ,
फिर भी वो दिखा रहे थे अपने चेहरे पर खुशी, 
इस पीटीएम ने ते सब ख़राब कर के रख दिया है। 
सारा का सारा मज़ा पी .टी. एम. ने ले  लिया है। 
दुखी के मरे घर से बाहर निकला ना जाए ,
खुशियों का त्यौहार दीपावली दिन पर दिन पास बढ़ता जाए ,
हुआ है हम सभी का आज पी. टी. यम.। 
सब की मेहनत रंग लाया है ,
काला ही सभी पर कर के दिखलाया है ,
हुआ है हम सभी का आज पी. टी. यम.। 
कवि: रौशन कुमार, कक्षा: 3rd,
अपना घर। 



शुक्रवार, 17 अक्टूबर 2025

कविता: "2025 की दीपावली"

 "2025 की दीपावली"
अपना घर के बच्चे की तरफ "दीपावली" की हार्दिक सुभकामनाए।
हो सके तो आप सभी ग्रीन दीपावली मनाए ,
आप सभी को "दीपावली" की हार्दिक सुभकामनाए। 
अब फूटेंगे पटाके रातो को दिन को छाए चुप्पी ,
बच्चे जलाएंगे छूरछुरीया और होंगे हैप्पी - हैप्पी। 
अब घरो में बनेगी मिठाइयाँ खट्टे और मीठे ,
खाएँगे बच्चे भर पेट होके मस्त - मगन ,
अपना घर के बच्चे की तरफ "दीपावली" की हार्दिक सुभकामनाए।
इस बार होंगे नए पटाके नए तरंगे ,
जोश के साथ जलाए इस नए युग की पटाके, 
इस बार की दीपावली होगी "2025" की शान की तरह,
आप सभी की दीपावली की हार्दिक सुभकामनाए। 
सब पटाके फोड़ेंगे जैसे लगे कोई तीर,
खाश कर रात के खाने में बने खीर ही खीर। 
मिल कर अभी दीपावली मनाए ,
अपना घर के बच्चे की तरफ "दीपावली" की हार्दिक सुभकामनाए।
खुश होंगे सब के चेहरे ,
मिठाइयाँ एक दूसरे को देकर बनाए रिस्ते गहरे ,
आप सभी को "दीपावली" की हार्दिक सुभकामनाए। 
अपना घर के बच्चे की तरफ "दीपावली" की हार्दिक सुभकामनाए।
 अपना घर के बच्चे, 
अपना घर। 

गुरुवार, 16 अक्टूबर 2025

कविता: "पापा ज़रा बूढ़े हो चले है"

 "पापा ज़रा बूढ़े हो चले है"
अब कंधे झुक गए है, 
उम्र निकल भी रही है,
रोशनी आँखों की धुंधला रही है,
थोड़ा धीरे चलते है, 
और अब भूलने भी लगे है, 
मेरे पापा ज़रा बूढ़े हो रहे है।  
आज भी बचपन हमारा,
आँखों में उनकी झूलता है, 
बड़े हो रहे है विश्वास छोड़ बच्चा समझा है। 
हमारी आज भी चिंता करते है,
अपनी फिक्र छोड़ हमारा ख्याल रखते है, 
मेरे पापा ज़रा बूढ़े हो रहे है। 
कवि: साहिल कुमार, कक्षा: 9th,
अपना घर। 

बुधवार, 15 अक्टूबर 2025

कविता: "फिलिस्तीन भी संघर्ष कर रहा है"

"फिलिस्तीन भी संघर्ष कर रहा है"
  आज़ादी का क्या मतलब है,
जहँ आज भी गुलामी बकरार है।
हुआ है जंग सुरु इजराइल और फिलिस्तीन के बिच,
बढ़ती जा रही है जलती आग की तरह।  
आज़ादी की रह पर,
लोग निकल पड़े है, लोगो की चाह पर,
है वो भी एक देश प्यारा,  
जिसे दिया देश का दर्जा है,
इजराइल रुक नहीं रहे हैं हमला करने से,
हर रोज बस मिसाइल गुरा रहा है, 
अरे! उनको मौका मत दो,
रक्त से उनका भी इतिहास लिखा जाएगा, 
हमेशा के लिए वो राजा ही कहलाएगा।  
दुनिया को रक्त से सजा रहा है, 
लोग बिन कुछ किये मृत्यु की बड़ रहे है,
दिन पर दिन लोग उन पर हावी हो रहे हैं। 
अरे! उन्हें भी जीने का हक़ दो,
ये लोगो दुनिया को बहकावा मत दो। 
मुश्किल कर देगा तेरा भी जीना,
ऊपर से निचे से निकले गए पसीना ही पसीना,
तेरा भी हो जाएगा मुश्किल जीना। 
अरे! उनमे उनका किया गलती है ,
थोड़ा बहुत तो सबके बीच में चलती है,
पर इसका ये मतलब नहीं है की तुम पूरा का पूरा पासा पलट दो। 
जिन्दा रहना तो सब के सर पर चहड़कर मत नाचो। 
कवि: नीरू कुमार, कक्षा: 9th,
अपना घर।  
 

मंगलवार, 14 अक्टूबर 2025

कविता : "बस एक मुस्कान दे बहिन"

  "बस एक मुस्कान दे बहिन"
सब कुछ था ठीक, सब कुछ था प्यारा,  
हर दिन था जैसे कोई त्योहार हमारा।
 फिर एक दिन आई वो खामोशी की आंधी, 
ना जाने क्यों हो गई बातों में बंदी।
तेरी चुप्पी अब दिल को चुभती है, 
तेरे बिना हर खुशी अधूरी लगती है। 
तेरे बिना ये घर भी सूना लगता है, 
तेरी हँसी ही तो थी जो सबको जगाता है।
तेरा जन्मदिन है आने वाला,
 मैं दूँगा तुझे सबसे बड़ा तोहफ़ा निराला। 
ना कोई चीज़, ना कोई सामान, 
बस एक बार दे दे अपनी मुस्कान।
जो भी गलती हुई, मुझे माफ़ कर दे, 
तेरे बिना ये दिल अब तन्हा सा रह गया है।
मैं तुझसे फिर से बात करना चाहता हूँ, 
तेरे बिना अब जीना नहीं आता है।
कवि: नीरज कुमार II, कक्षा: 5th, 
अपना घर।  

सोमवार, 13 अक्टूबर 2025

कविता: "आइ है दीपावली"

 "आइ है दीपावली" 
आ गई है द्वियो का त्यौहार दिवाली,
चारो ओर छाई है खुशहाली, 
द्वियो से सजाएंगे "अपना घर" का  द्वार, 
खुसी से मनाएंगे ये त्यौहार अपना घर के परिवार। 
हम लोग कभी नहीं छुटाते है पटाके, 
क्योकि प्रदुषण से लो हो जाते है परेशान, 
हम सब हमेशा रखते है ये सब चीजों का ख्याल, 
इस लिए हम सब मानते है ग्रीन दिवाली हर साल।  
ये है द्वियो का त्यौहार,
हर साल आता है लोगो के लिए उपहार,  
हर जगह जलाते है द्विय, 
क्योकि दीपावली है द्वियो त्यौहार।  
आ गई है दीपावली है द्वियो का त्यौहार दीपावली,
चारो ओर छाए है खुशहाली , 
द्वियो से सजाएगने "अपना घर" एक द्वार ,
खुसी से मनाएंगे ये त्यौहार अपना घर के परिवार।  
कवि: नवलेश कुमार, कक्षा: 11th,
अपना घर।  
 

रविवार, 12 अक्टूबर 2025

कविता: "तबाही"

 "तबाही"
तड़ा - तड़ हुआ गोला बारुद,
झाड़ - झाड़ हुआ गोलियों की बरसात। 
जो भी आमने - सामने आया ,
मौत को वो गले लगाया। 
जैसे - तैसे जी जान लगाया जिन्दा रहने के लिए , 
सब संम्पतियो को छोड़ - छाड़ आया ,
है! बेतहारना छोड़ा और भागा 
मगर कैसे ये हो पाता संभव कोई वहाँ से बच निकलता ,
चाहे कर लेते वो भी अगर लाखो कोशिश ,
फिर भी कुछ नहीं वो कर पाते। 
तड़ा - तड़ हुआ गोला बारुद ,
झाड़ - झाड़ हुआ गोलियों की बरसात।
कवि: पिन्टू कुमार, कक्षा: 10th,
अपना घर।  

गुरुवार, 9 अक्टूबर 2025

कविता : "गाज़ा की कहानी"

 "गाज़ा की कहानी"
 जिस तरह इसराइल ने गाज़ा ,
पर बम वारुद दागने लगे है।  
ठीक उसी तरह बाकी देश ,
उसको बचाने के बजाए वो खुद भागने लगे है। 
सभी घरो में बैठे बैठे देख ,
रहे है उसके जंग।  
बेचारा ग़ज़ा भी सोच रहा है। 
काश कोई पल भर के लिए हो जाए संग, 
खाना मिलने की परेशानी है। 
चारो तरफ आग और रक्त की निशानी है।  
पर अभी भी जाने की चाह है, 
भले ही उसके लिए नहीं कोई रहा है। 
कवि: गोविंदा कुमार, कक्षा: 9th,
अपना घर। 

बुधवार, 8 अक्टूबर 2025

कविता: "पढ़ - लिख रहा हूँ"

 "पढ़ - लिख रहा हूँ" 
इस समय फुल जोश में पढ़ रहा हूँ,
लिख भी रहा हूँ। 
ये भी बता दू की मैं अभी तैयारी कर राहु,
क्यूंकि परीक्षा का एलान है न ,
तभी इस तरह पागल सा पढ़ रहा हूँ।  
लिख भी रहा हूँ। 
तुमने ने कहा मैं सो जाता हूँ, 
ऐसी बात नहीं है यार, 
वो गलती से आँख बंद होता है।  
जान बूझकर वैसे भी तो आज तक सोया नहीं, 
कभी ऐसी कोशिश भी किया होगा,
मुझे अच्छे से कुछ याद नहीं। 
खेल - कूद तो, है कुछ खाश नहीं, 
इसलिए छोड़ दिया हमने उसको न जाने कब का। 
ये भी मुझे याद नहीं, 
अगर दंग से कुछ कर हूँ ,
तो सिर्फ में पढ़ हूँ लिख रहा हूँ,
इस तरह मैं। 
तैयारी कर रहा हूँ.......... ।। 
कवि: पिंटू कुमार, कक्षा: 10th,
अपना घर। 

मंगलवार, 7 अक्टूबर 2025

कविता: "मस्त मगन मेरी भी जिंदगी थी "

 "मस्त मगन मेरी भी जिंदगी थी "
मस्त मगन मेरी भी जिंदगी थी।  
न जाने कहा से दुखो का पहाड़ टूट पड़ा,
जीना कर रखा है मुश्किल अब मेरा 
क्या करे कुछ समझ नहीं आए रहा है?
जहाँ मै कभी हस्ता था अब रोया न जाए,
धीरे - धीरे से दुखो का पहाड़ बढ़ता जाए।
मस्त मगन मेरी भी जिंदगी थी।  
आपको मेरी खुशी देखी नहीं जा रहा क्या?
अरे मुझे भी जीने का हक़ है अपनी तरह से,
अब बस करो मुझे परेशान करना 
अब मुझे भी है जीना और मरना। 
न जने कौन सा परिंदा है तू, 
अब तक क्यों जिन्दा है तू ?
मस्त मगन मेरी भी जिंदगी थी। 
न जाने क्यों हसी नहीं आती है अब ?
रूठा रूठा सा लगता हूँ अकेला सा लगता हूँ। 
क्या ये कोई रिस्ता है। 
मस्त मगन मेरी भी जिंदगी थी। 
कवि: नीरु कुमार, कक्षा: 9th, 
अपना घर। 


सोमवार, 6 अक्टूबर 2025

कविता: "मुझे अकेला ही रहने दो"

 "मुझे अकेला ही रहने दो" 
क्यों छीन रहे हो मेरी खुसी मुझसे,
क्या हमसे कोई नाराजगी है। 
अरे जीने दो जिंदगी मुझे अपनी तरह,
इसमें क्या कोई बुराई है. 
हर वक्त रुकावट दी आपने,
जो मेरे तक ही रहती है। 
है कभी पूछा आपने हमसे,
की मेरे मन में क्या रहती है।  
कभी घूम ले बाहर जाके, 
पर आपकी नहीं मर्जी है।  
घुटन हो रही है मुझे आपसे ,
या फिर आप में ही कोई बुराई है।  
रहने दो बस अब इतना,
अब आगे की जिंदगी मेरी है। 
कवि: सुल्तान कुमार, कक्षा: 11th,
अपना घर। 

रविवार, 5 अक्टूबर 2025

कविता: "कब होगा भारत मेरा ऐसा"

 "कब होगा भारत मेरा ऐसा"
 खेतों में किशान फसल लगाएगा।  
तो चारो ओर हरियाली छाएगा। 
तभी ये देश प्रदूषण से बच पाएगा। 
और हरियाली चारो ओर छाएगा। 
अब वो मौशम आएगा , 
जब भारत  देश विकास की रेस में आएगा। 
किशानो की मेहनत से चारो और हरियाली छाएगा। 
जब देश में फसल लहराएगा 
पेड़ो पर सारे चिड़िया चहचहाएगा ,
सभी लोग खुसी से गाएगा। 
भारत देश विकाश के रेस में आएगा ,
जब फसल चारो ओर लहराएगा 
फसल भी झूम - झूमकर गाएगा। 
खेतों में फसल किशान लगाएगा ,
तो खेतो में फसल लहराएगा 
किशान भी झूम - झूमकर गाएगा ,
जब फसल खेतो में लहलहाएगा। 
झूम- झूमकर गाएगे और फसल लहराएगा 
जब देश में हरियाली आएगा। 
तो सारे फसल लहराएगा, लहराएगा, लहराएगा।  
कवि: नवलेश कुमार, कक्षा: 11th,
अपना घर। 

कविता: "मेरा अधूरा सपना "

"मेरा अधूरा सपना " 
सुबह हो गयी , दोपहर हो गयी, और शाम भी हो गयी।  
अब बैठे - बैठे समय कट रहा है। 
इस बिच रत भी हो गई है। 
जब अंदर गया तो नींद आ गयी,
जब सोया तो सपनो में खोया,
एक अन बेसुनि सी आवाज से नींद खुली 
सपना टूटने की वजह से मैं खूब रोया, 
दूर जाती रही वो आवाज पीछा करती रही। 
जब तक उसने मेरी नींद खराब नहीं,
कर दिया तब तक उसे चैन न रही। 
घूमता - फिरता मस्ती मैं चलता, 
गिरता - संभलता रहो में चलता,
सुबह से शाम कब हो गयी।  
कवि: मंगल कुमार, कक्षा: 9th,
अपना घर। 

शुक्रवार, 3 अक्टूबर 2025

कविता: "नींद आ रहा था"

 "नींद आ रहा था"
मन की गहरी छत में किताब लिए पढ़ रहा था। 
खोया मेरा नाजुक दिल , खली,
और रुवासा चेहरा मी साथ था। 
आगे के प्रश्न धुंधली और कठिनाई से उभर रहा था। 
मन थोड़ा परेशान था मगर दिल में , 
न हार माने का जीगर था 
पर उसी समय मेरा पूरा शरीर सिमट कर हार रहा था,
आँखे मानो ज्वाला से जल रहा हो। 
सच्च बताऊ दोस्तों। 
ये सब सिर्फ निंदा में होता है। 
कवि: निरंजन कुमार, कक्षा: 9th 
अपना घर। 

गुरुवार, 2 अक्टूबर 2025

Poem: "Ant's kingdom"

"Ant's kingdom"
what's gang in ant's kingdom?
finding something that all the time.
whether it is day or night,
they are working so unlike, 
and are very fast too. 
don't know what purpose they special,
seeing not a bit of pause, 
  there may be a captain or leaders.
under whose guiding they're,
working with full of fear, 
is in the kingdom jewels is more. 
for safety and security of it,
combination is preparing on, 
what's gang there, do you have on idea?
it's a matter if you don't,
why they seem so crazy, 
in the kingdom of ants.
what's does they have 
and 
what we can't have?
Poet: Pintu Kumar, Class: 10th 
Apna Ghar 

बुधवार, 1 अक्टूबर 2025

Poem: "Sun in the Sky"

 "Sun in the Sky" 
Sun is shining in the sky,
which I like mos.t 
in my whole life dream,
I was giving lost. 
my life was given for away, 
which I would not stop. 
I want to begin me new life dream,
like a dreamer's shop. 
just like sky silence in, 
silence without stars.
my life was given very for, 
imagine the new world full of happiness.
if anyone not come to you, 
you will feel loveliness.
Poet: Mangal Kumar, class 9th, 
Apna Ghar.

Poet: "Future is Our Gaming"

 "Future is Our Gaming"
 I started dreaming that,
future in now gaming.
all talented children are,
participating in it.
from the apps YouTube, insta to reddit.
children are playing with full interest,
Infront of their parents or even secret, 
all are blaming. 
But Who Care?
Future is our Gaming.
Poet: Mangal Kumar, Class: 9th,
Apna Ghar