" हम चलेंगे "
हम चलेंगें , हम चलेंगे,
छाया घोर अँधेरा था |
तूफानों का डेरा था ,
मंजिल की ओर जाना था |
फिर भी आगे जाना था,
घर घर में दीप जलाना था |
पथ में जो भी आएगा,
ठोकर से वह उड़ जाएगा |
हम चलेंगें , हम चलेंगे,
छाया घोर अँधेरा था |
कवि : सार्थक कुमार , कक्षा : 9th , अपना घर
कवि परिचय : यह हैं सार्थक जिन्होंने यह कविता लिखी है जो की बिहार के नवादा जिले के रहने वाले हैं | सार्थक को कवितायेँ लिखने का बहुत शौक है और बहुत सी कवितायेँ भी लिखते हैं | सार्थक पढ़ाई में बहुत अच्छे हैं | सार्थक को क्रिकेट खेलना बहुत पसंद है |
1 टिप्पणी:
वाह
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