" काले - काले बादल छा रहे हैं "
काले - काले बादल छा रहे हैं,
खिली कलियाँ भी मुरझा रहे हैं |
पत्तों से पानी यूँ टपक रहा है,
बादलों से पानी लगातार बरस रहा है |
पत्तों - घासों में हरियाली आ गई
मानों जीवन की खुशियाँ
बहार बनकर छ गई |
भरी महफ़िल की गर्मी
इन बूंदों में समां गई |
हरों पत्तों को खुशियां दे गई
कुछ ऐसा ही बारिश कर गई |
कवि : अखिलेश कुमार , कक्षा : 8th , अपना घर
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