मंगलवार, 12 मार्च 2019

कविता : काले - काले बादल छा रहे हैं

" काले - काले बादल छा रहे हैं "

काले - काले बादल छा रहे हैं,
खिली कलियाँ भी मुरझा रहे हैं |
पत्तों से पानी यूँ टपक रहा है,
बादलों से पानी लगातार बरस रहा है |
पत्तों - घासों में हरियाली आ गई
मानों जीवन की खुशियाँ
बहार बनकर छ गई |
भरी महफ़िल की गर्मी
इन बूंदों में समां गई |
हरों पत्तों को खुशियां दे गई
कुछ ऐसा ही बारिश कर गई |


                                                                                                  कवि : अखिलेश कुमार , कक्षा : 8th , अपना घर

कवि परिचय : यह है अखिलेश जिन्होंने यह कविता लिखी है जो की बिहार के नवादा जिले के निवासी हैं | अखिलेश को कवितायेँ लिखने का बहुत शौक है और अपनी कविता का शीर्षक हमेशा प्रकति से ही मिलती होती है | अखिलेश को क्रिकेट खेलना बहुत पसंद है |  

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