" जब गई ये ठंडी "
धीरे से जब गई ये ठंडी,
तेज़ी से तब आई ये गर्मी |
जमीन हुए बर्फ़ में भी
पहुँचा गई नमीं |
मच्छरों ने किया हमला,
परेशां हुए हम सभी |
इनसे बचना मुश्किल है,
रजाई में भी घुस जाए ये |
तब धड़कते ये दिल है | |
कानों में भी भन -भन करते,
सभी के दिल थम थम जाते |
जानें ली इन्होने कई,
धीरे से जब गई ये ठंडी,
तेज़ी से तब आई ये गर्मी |
कवि : समीर कुमार , कक्षा : 8th , अपना घर
कवि परिचय : यह कविता समीर के द्वारा लिखी गई है जो की प्रयागराज के निवासी हैं और वर्तमान समय में अपना घर संस्था में रहकर अपनी पढ़ाई पूरी कर रहे हैं | समीर को कवितायेँ लिखने का बहुत शौक है और अभी तक समीर ने बहुत सी कवितायेँ लिख चुके हैं | समीर को इसके अलावा गीत गाने का बहुत शौक है |
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