सोमवार, 31 मार्च 2025

कविता : " कभी काम आएगे "

" कभी काम आएगे "   
 वक्त पड़ने पर सब आते है ,
काम हो जाने के बाद चले जातें है। 
वो सिर्फ आप के साथ रहने का दिखवा करते है। 
और तुरंत ही भूल जाते है ,
छड़ भर  में वो बदल जाएगे। 
हमें आधे रास्ते पर ही छोड़ जाएगे। 
तो वो नजर कहा आएगे ,
हमारे साथ रहने का दिखावा करते है। 
जब काम पड़ता है ,
तब छड़ भर में ही भूल जाते है। 
 वक्त पड़ने पर सब आते है ,
काम हो जाने के बाद चले जातें है। 
कवि :मंगल कुमार, कक्षा : 9th,
अपना घर। 

कविता : " काम करो "

"कुछ काम करो  " 
 सुबह हो गया दोस्तों ,
उठाकर थोड़ा सा काम करो। 
क्या सोते रहोगे दिन भर ,
भविष्य में तुम पछताओगे। 
सुबह हो गया दोस्तों ,
उठकर थोड़ा सा काम करो। 
सोते - सोते मोटा हो जाओगे ,
उठकर थोड़ा काम करो। 
सुबह का ये मौसम बहुत अच्छा होता है। 
जल्दी उठकर काम करो। 
कवि : अवधेश कुमार, कक्षा : 12th,
 अपना घर। 

रविवार, 30 मार्च 2025

कविता : " माँ "

 "  मेरी माँ " 
ये लव्ज है तो उन्ही की बदौलत।  
जिंदगी भी तो उन्ही की बदौलत। 
जननी होकर मेरी अम्मा दरजा निभा  लिया। 
इतने काबिल है तो उन्ही की बदौलत ,
खुशियाँ  जिंदगी भेंट में दे दी। 
जिंदगी में मेरा नसीब लिख  दिया ,
दिग्गज है औलाद पर जिसने अपने अम्मा को भुला दिया ,
मेरी तो जान है वो। 
 जिसे मैने  हृदय  में बैठा। 
ये लव्ज है तो उन्ही की बदौलत।  
जिंदगी भी तो उन्ही की बदौलत। 
कवि : नवलेश कुमार , कक्षा : 10th ,
अपना घर। 

शुक्रवार, 28 मार्च 2025

कविता : " क्या लिखू "

 "  क्या लिखू "
लाइनों में न है कुछ खास ,
क्या लिखू न विचार है मेरे पास। 
सम्मान और आदर का रखता न मै आश , 
झूठी बातो से न करते अपने कविता का सारांश।  
तुम्हे मै क्यों बताऊ अपने मन की बात ,
सच्चे लोग , सच्चे बात।  
याद रखो लिखूँगा वही जो लगते अच्छे। 
लाइनों में न है कुछ खास , 
क्या लिखू न विचार मेरे पास। 
कवि : निरंजन कुमार , कक्षा : 9th,
अपना घर। 

कविता : " आशमा के दूर कही ,है एक जहां "

 "  आशमा के दूर कही ,है एक जहां  " 
 आशमा के दूर कही ,है एक जहां 
है तो वो पास नहीं ,पर जाना है वहां। 
रास्ते में रूकावट तो आएगी ही 
पर हमें भटकना नहीं है यहां - वहां। 
आशमा के दूर कही , है एक जहां 
हालातो से रोना नहीं है 
बस मेहनत करना है सोना नहीं है 
आज नहीं तो कल सही पर जाना है वहां। 
 आशमा के दूर कही ,है एक जहां 
जब मिलेंगे लोग हमसे , करेंगे बाते 
उनमे से कुछ लोग पूछ भी लिया करते है  
की बड़े होकर रहना है कहां 
आशमा के दूर कही , है एक जहां 
है तो वो पास नहीं ,पर जाना है वहां। 
कवि : गोविंदा कुमार , कक्षा : 9th,
अपना घर। 

गुरुवार, 27 मार्च 2025

कविता : " गैर लोग "

 " गैर लोग "
जो हमसे नजरे चुराते है 
या फिर लव्जो में कडुवाहट लाते है
अरे भूल गए हम उनको 
जो हमारे बारे में गलत फरमाते है। 
कष्ट उनको ना झेलना पड़े 
इस लिए हम शांत रहते 
वरना नजरे चुराना तो हमें भी आता है। 
लव्जो में कडुवाहट हम भी ला सकते है 
बस उनको कष्ट ना हो 
इसलिए हम थोड़ी सी लाज़ रखते है। 
समय आने पर मुँह मोड़ लेते है 
या फिर बोलना ही  छोड़ देते है 
 अरे छोड़ो गैर लोगो पर ध्यान देना 
जो अपनो से ही लड़ जाते है। 
खाख सफलता आए जिंदगी में उनकी 
 जो लोगो के बीच नफ़रत फहलाते है
अरे छोटी सी जिंदगी ही तो है 
अगर साथ जी ले तो क्या चला जाएगा 
बस अपने को जताने के लिए के लिए 
ईगो साथ में रखते है। 
कवि : सुल्तान कुमार , कक्षा : 10th ,
अपना घर। 

गुरुवार, 20 मार्च 2025

Poem: " End - up of Examination "

  " End - up of Examination "
Ready for the end - up of examination,
after then there will be a Vacation. 
Children can have time learn and spend,
because there will be a dance, music will held. 
many students can also go to home,
to give time to Family and to Roam. 
there will be the time for the result of the year, 
after this new session will be near.
In new session, new class with new friends
and new teachers will be there,
lots of happiness will come with tear.
Ready for the end - up of examination,
I wish you enjoy you all summer vacation.

Poet: Pankaj Kumar, class: 10th,
Apna Ghar.

मंगलवार, 18 मार्च 2025

कविता : " होली आई "

 " होली आई " 
आ गया है होली का त्योहार। 
आ गया है रंगो का त्योहार। 
लोग भेद - भाव जैसा नहीं करते है व्यवहार , 
चाहे हिन्दू हो या मुश्लिम , 
सब मिलकर मनाते है  त्योहार।  
खुशियाँ लहलाती धीरे - धीरे मे ,
ये है होली का त्योहार। 
खाएगे चुर्री और गुजिया ,
बटेगे सबको प्यार। 
खुशी खुशी मे मनाऐंगे ,
ये होली का त्यौहार ,
आ गया है रंगों  का त्योहार। 
कवि ; नवलेश  कुमार , कक्षा : 10th, 
अपना घर। 

कविता : " परेशानी "

 " परेशानी "
कितनी बदली हुई है महफिले ,
जो फुर्सत नहीं किसी को, 
जो गुजरे हुआ कल को निहारे ,
हर किसी की अपनी परेशानीयाँ है। 
इन परेशानियाँ कि अपनी कहानियाँ है। 
जहा देखू उदासीन मिले जहान सारा ,
ना जाने क्यों बना बैठा बेगाना ,
नजरे भी अब झुक जाती है। 
इन नराहो पर जवाब दे जाती है। 
इन परेशानियाँ न जाने कितनी को दुख दे जाती है। 
कभी - कभी सोचता हूँ सब खत्म हो जाए ,
ये दुखो का पहाड़ कही गुम हो जाए। 
इतनी फुर्सत  नहीं है अब अपने को ,
जो देख सके बीते हुए सपने को ,
वो मस्त बचपन खेल राह था सपने को ,
मन की बात छपा न पाया मन में ,
अब कहाँ छिपाए इन परेशनियाँ को। 
कोई जगह नहीं जहाँ रखू इन कहानियों को। 
कवि : साहिल कुमार , कक्षा : 9th,
अपना घर। 

कविता : " ये मंजिल क्यों , क्यों है ये राह "

 " ये मंजिल क्यों , क्यों है ये राह "  
 तेरी मैं तलाश में 
मन - मन भटकता हूँ ,
हुआ नहीं कभी भेट ये मंजिल से  ,
एक बैठा जा किस वन - बाग में ,
दिखता नहीं तू कैसा है रे ,
धुँधला - धुँधला क्यों राह में ?

उम्मीदे झलख रही है ,
मन यूँ ही निराश है ,
चार कदम चले बिना है।  
चरण छितराए विराम करुँ, 
पड़ा हु आधी राह में। 
पूछ रहा हूँ तुझसे ये मंजिल ,
गुमसुम , क्यों है ये राह में ? 

माँ - बहन के हाथों खाए ,
हो रहे हैं लम्बे वक्त। 
ठेंस - ठेंस है यहाँ पे इतना ,
की भर आए मेरे आँख ये मंजिल। 
इस जख्म को करे कौन मरहम - पट्टी ,
मैं अकेला ही इस एकांत में। 
कहाँ मिलेगी सतरंग ये मंजिल ,
गरीबी  क्यों है ये राह में। 
कवि : पिंटू कुमार ,कक्षा : 10th,
अपना घर।  

कविता : " रंगो का ये होली "

 " रंगो का ये होली "
होली आया होली आया। 
साथ में बहुत सारे रंग लाया। 
खुशियां ही खुशियां चारो ओर लहराया।  
होली आया होली आया। 
साथ में मिठे - मिठे गुजिया लाया। 
रंगो का नाम ही होली है। 
बोलिए बुरा न मानो होली है। 
कवि : अप्तर हुसैन , कक्षा : 8th,
अपना घर। 

कविता : " होली "

 " होली "  
होली है ये होली है , 
खुशियों की ये होली है।
साल में एक बार आता होली ,
सब का मन बहलाता होली। 
 लोग यही तो चाहते हर साल ,
हम सब मिलकर मनाए होली। 
होली में खाए गुजिया ,
गुजिया खाकर मौज उड़ाए। 
होली है ये होली है। 
कवि : अजय कुमार , कक्षा :6th,
अपना घर। 

सोमवार, 17 मार्च 2025

कविता : " होली आई "

" होली आई " 
होली रंगो का त्यौहार हैं। 
होली में रंगो का बौछार है। 
तरह - तरह की मिठाइयाँ ,
और नमकीन का स्वाद है।
होली रंगो का त्यौहार है। 
एक - दूसरे को रंग लगाकर प्यार जताए। 
घर - घर जाकर खुशियाँ बाँट आए। 
तरह - तरह के रंगो का सिंगार है। 
बच्चे और बूढ़े रंग लगाने को त्यार हैं। 
होली का यह त्यौहार है। 
कवि : निरंजन कुमार ,कक्षा : 9th,
अपना घर। 
  

कविता : " ज्यादा नाज़ मत करना "

 " ज्यादा नाज़ मत करना "
ज्यादा नाज़ मत करना अपनी सफ़लताओं पर। 
वक्त सबकुछ बदल देता है इस जहाँ में। 
इस जहाँ में लोग आते है जिंदगी में हररोज ,
फिजूल वक्त जया मत करना मुस्कुराने में। 
ज्यादा नाज़ मत करना अपनी सफलताओं में। 
कभी - कभी नीचे ही उदा  ले जाती सपनो को ,
 सबकुछ बदलकर साहिल पर छोड़ जाती हैं। 
ऊंची सफलताओं में ,
बढ़ती असफलताओ से निराश मत होना जिंदगी में। 
वक्त सबकुछ बदल देता हैं इस जहाँ में। 
विशवास करना अपनी उचाइयो मे ,
ज्यादा नाज़ मत करना अपनी सफलताओं में। 
कवि : निरु कुमार ,कक्षा : 9th,
अपना घर। 

कविता : "बचपन "

  " बचपन "
वो बचपन का भी क्या जमाना था। 
सुबह उठना और स्कूल आना जाना था। 
उस बचपन में डाट मार तो हम ने भी खाए हैं। 
पर रोकर भी बत्तीसी दिखाना ,
बस एक बहाना था। 
पढ़ाई चाहकर भी न करना , 
पर दोस्तो के साथ समय उड़ाना था। 
खेलने के लिए  सबसे पहले आगे पहुच जाना ,
और उसी में पूरा समय बिताना था। 
वो बचपन का भी क्या जमाना था। 
दोस्तों के साथ लड़ना और 
दुसरो को लड़ना था। 
कभी - कभी तो मार हम भी खा जाते ,
पर बाद में उसको भी चिढ़ाना था। 
वो बचपन का भी क्या जमाना था।  
कवि : गोविंदा कुमार ,कक्षा : 9th,
अपना घर 

रविवार, 16 मार्च 2025

कविता : " हौसला रखो "

 " हौसला रखो "
 हालातो से तंग आकर ,
उम्मीदों को पूरा करना छोड़ दिया। 
जूनून थे शरीर के अंग - अंग में  ,
पर उसको  जगाने के लिए मुँह मोड़ लिया 
हौसले बढ़ जाएगी ,
चीज तो नहीं मिलेगी ,
पर उम्मीद रखो ,
चड़ना होगा तो चाँद पर भी चढ़ जाएगे। 
उम्मीद के नीचे भी बूस्टर लगाने की चाह हैं। 
आगे क्या होगा इसका न कोई परवाह हैं। 
कवि : गोविंदा कुमार ,कक्षा : 9th,
अपना घर 

सोमवार, 10 मार्च 2025

कविता: " महा मुकाबला "

  " महा मुकाबला " 
होगा आज दो टीमों में छोड़ ,
जीत - हार के बाद होगी तोड़ - फोड़। 
भारत - नेवजीलैंड एक साथ आएगे ,
स्टेडियम में दिखेंगे दोनों टीमों के फैंस ,
भरता से रोहित , विराट व ,
हार्दिक खेलेंगे धुआँ धड़ पारी। 
वरुण , अक्षर वह जादू पड़ेगे नेवजीलैंडपर। 
सभी की निगाहे तिकी रहेंगे ,
टीम इंडिया को जीतनी पड़ेगी ,
 बाद आतिसबाजी दिखेगी। 
सारे खिलाड़ियों को ऑल द बेस्ट। 
जीत कर दिखा दे वो भी है बेस्ट। 
कविः निरंजन कुमार , कक्षा : 8th,
अपना घर।  

शनिवार, 8 मार्च 2025

कविता: " होली "

 " होली " 
होली आई - होली आई ,
रंग बिरंगी होली आई। 
होली में हम सभी एक- दूसरे को ,
रंग लगाते हैं। 
धूम - धाम से होली को मनाते है। 
सबके यहाँ पकवान बनते है , 
खा - पी के मस्त रहते है। 
होली आई - होली आई ,
रंग बिरंगी होली आई। 
कविः विष्णु कुमार , कक्षा: 5th 
अपना घर 

शुक्रवार, 7 मार्च 2025

कविता: " तुम्हारे बारे में "

 " तुम्हारे बारे में " 
तुम्हे समझ नही आएगा 
इस कविता का सारांस ,
इसमें  ज्ञान की ही बाते है ,
जो सिर्फ हमको पता है। 
तुम्हे क्या पता ,तुम तो हसकर  
 निकल जाओगे। 
पर तुम्हे समझ नहीं आएगा। 
इसमें मैंने तुम्हारे बारे में ,
भी बताया है। 
जो सिर्फ आच्छी और , 
बुरी चीजों दे भरा है। 
पर तुम्हे नजर नहीं आएगा ,
तुम्हे समझ नहीं आएगा। 
 क्या कहा था तुमने ?
सिर्फ तुम्हे ही लिखना पता हैं। 
मैंने इसमें पूरा संसार रचा हैं। 
जो सिर्फ हमको पता हैं ,
 तुम्हे समझ नही आएगा।
कविः सुल्तान कुमार कक्षा: 10th 
अपना घर  

गुरुवार, 6 मार्च 2025

कविता :"मैं - एक राह दो मेरे मंजिल भी एक "

"मैं - एक राह दो मेरे मंजिल भी एक "

            मैं - एक राह दो मेरे मंजिल भी एक
          आंधी वेग गति से आएगा | 
          या आएगा तो धीमे धीमे 
          कैसे भेष सजा कर आएगा | 
         वर्षा काल की फुहिया भी 
        सूखा घड़ा भर पायेगा या न | 
        शाम ढला तो फिर से वापस 
    सवेरा लौटेगा या अंधार होता ही जाएगा | 
       कैसा सफर इस नाव पे होगा ?
     चलता हूँ अब सवार होने को | 
                                                     मै - एक राह दो - मेरे मंजिल भी एक   |                                                                                                                                                                 कवि :पिन्टू कुमार                                                                                                                कक्षा : 10 th 
                                                                                                              

बुधवार, 5 मार्च 2025

कविता: " क्यूँ मुस्कराता हूँ "

  " क्यूँ मुस्कराता हूँ "
 क्या सोचकर रह जाता हूँ 
चलती रहो में यू रुक जाता हूँ। 
अपने हालातों को सोंचकर , 
न जाने खूद पर क्यूँ मुस्कराता हूँ। 
जब - जब थककर रुकता हूँ , 
आगे निकलने वाले पर सोचकर हूँ ,
न जाने खूद पर क्यूँ मुस्कराता हूँ। 
अजीब सा पागलपन दिमाग पर होती है। 
बढ़ने की चाह ये भारी है ,
सबकुछ जानते हुआ हुए भी मैं करता हूँ। 
कभी - कभी अपने को भूला बैठता हूँ। 
चलती रहो में यूँ रुक जाता हूँ ,
न जाने  क्या सोचकर ,
खुद पर ही मुस्कराता हूँ। 
कविः साहिल कुमार , कक्षा: 8th 
 अपना घर 

मंगलवार, 4 मार्च 2025

कविता : " बदलते मौसम "

 " बदलते मौसम "
आने वाला  है वो मौसम 
जिस मौसम का है इन्तजार। 
ठंडी से बच -  बचकर ,
बीत गया है आधा साल।,
सिर्फ था गर्मी का इन्तजार। 
ये गर्मी आने वाला है फिलहाल , 
ये ठंडी को जाने के लिए ,
है फिर एक सप्ताह की बाद। 
फिर आ जाएगा गर्मी ,
और खूब मजे करेंगे , 
चाहे गर्मी हो या बरसात। 
बस कुछ दिनों की है इन्तजार। 
आने वाला है वो मौसम 
जिस मौसम का है इन्तजार। 
फिर तो खूब मजे करेंगे ,
 चाहे गर्मी हो या बरसात। 
बस कुछ दिनों का है इन्तजार। 
इस कविता के कवि है नवलेश कुमार। 
कविः नवलेश कुमार , कक्षा: 10th 
अपना घर 

सोमवार, 3 मार्च 2025

कविता: " बचपन के दिन "

 " बचपन के दिन "
 सुबह से लेकर शाम तक शाम तक। 
खेलता रहता पुरे दिन तक 
थकता न था फिर भी 
वे भी क्या दिन थे। 
 मेरे बिते हुए बचपन के दिन थे। 
. खाना और खेलना लगता था 
पुरे जीवन भर। 
जब नहीं निकले थे मेरे पर ,
पापा के मार से डरता था।  
जब गुस्सा करता था। 
माँ के पास जाया करता था। 
वे भी  क्या दिन थ,
वे मेरे बचपन के दिन थे। 
गुब्बारे वाले आते थे ,
माँ चारो ओर पुकारते थे। 
कभी खेलौना वाला आता था। 
दस -पाँच का ही सही 
खेलौना खरीद ले देती थी। 
माँ तो माँ है वे कभी दुखी नहीं होती थी। 
बचपन के  वे भी दिन,
गुजरा यारो के बिना। 
वे भी क्या दिन थे,
वे मेरे बिते हूँए दिन थे। 
कविः पंकज कुमार , कक्षा: 10th 
अपना घर 

रविवार, 2 मार्च 2025

कविता :" बंद पिंजरे में "

" बंद पिंजरे में " 
 कब तक बंद रहुगा इस पिंजरे में 
 एक दिन तो बहार आना हैं। 
बहुत ही जी लिए घुट - घुट  कर, 
कुछ  करके तो दिखाना हैं। 
वे वक्त कब आएगा ,
जब करुगा सपने सकार 
 एक मौका देकर तो देखोये। 
नहीं जाने दुगा बेकार ,
खुश नहीं हूँ अपनी इस जिंदगी से 
एक बार तो बहार आना हैं। 
देखाऊगा मंजिल को छूकर 
लोगो की मन की जलने 
 को मिटाना है। 
कविः मंगल कुमार ,कक्षा: 9th 
 अपना घर  

शनिवार, 1 मार्च 2025

कविता : " ख्वाबों पर पहरा "


 "ख्वाबों पर पहरा "
 ख्वाबों पर पहरा , 
पर हर - कदम कठिनाई से चला। 
किसी तरह उस और तक पहुँचा। 
जहा कब्र का निशान मिला 
हो रहा था मुझमें ,
पर  हमारे लिए वक्त काम था। 
पर अब मिला ,
ख्वाबो पर पहरा। 
चाँदनी रात की शाम थी। 
सोचा था कुछ अनोखा 
पर यह बात गिल को दर्द देता था। 
ख्वाबो पर पहरा ,
जैसे की सपनो का मर जाना। 
अब बस सुकून की लम्हे गुजारना 
चाहता हूँ। 
अब बात हो गई ख्वाबो से लड़ने की। 
जख्म का दाग अभी तक नहीं मिटा सका 
पर ख्वाबो पर पहरा ,
अभी तक  हटा नहीं सका। 

कविः अमित कुमार ,कक्षा: 10th 

अपना घर