शीर्षक :- जिन्दगी गोल है
लगता है कि जिन्दगी एक वृत्त की तरह गोल है....
बस यूँ ही चलते जाओ, न होने को भोर है,
मैं सोचता हूँ कि कल मेरी जिन्दगी में....
एक भोर की किरण आयेगी,
और कुछ कर दिखलाने की चाह....
एक कोशिश की किरण,
मेरे दिलों में दिमाग में भर जाएगी....
पर क्या? करें जब सुबह की किरण आती है,
तो फिर आने वाला कल की जिन्दगी में....
अँधेरा ही अँधेरा ढला नजर आता है,
न कोई सुबह की किरण नजर आती है....
न आशा की उम्मीद नजर आती है,
बस रात दिन मेरे दिलों दिमाग में....
अँधेरा ही अँधेरा नजर आता है,
लगता है कि जिन्दगी एक वृत्त की तरह गोल है....
बस यूँ ही चलते जाओ जाओ न होने को भोर है,
लगता है कि जिन्दगी एक वृत्त की तरह गोल है....
बस यूँ ही चलते जाओ, न होने को भोर है,
मैं सोचता हूँ कि कल मेरी जिन्दगी में....
एक भोर की किरण आयेगी,
और कुछ कर दिखलाने की चाह....
एक कोशिश की किरण,
मेरे दिलों में दिमाग में भर जाएगी....
पर क्या? करें जब सुबह की किरण आती है,
तो फिर आने वाला कल की जिन्दगी में....
अँधेरा ही अँधेरा ढला नजर आता है,
न कोई सुबह की किरण नजर आती है....
न आशा की उम्मीद नजर आती है,
बस रात दिन मेरे दिलों दिमाग में....
अँधेरा ही अँधेरा नजर आता है,
लगता है कि जिन्दगी एक वृत्त की तरह गोल है....
बस यूँ ही चलते जाओ जाओ न होने को भोर है,
कवि : सागर कुमार
कक्षा : 9
अपना घर
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