शीर्षक :- सावन
आया सावन छायी हरियाली....
अम्बर में घिरी है घटा काली,
हर जगह अब फैला कीचड़....
पानी से गली है गई भर,
सावन में लगने लगे पेड़ों पर झूले....
बड़े हुए हम वो सब है अब भूले,
खेतों में जब बरसा पानी खुश हुआ किसान....
सूखी धरती में आई फिर से जान,
भीगते हुए बारिश में स्कूल जाना....
झमाझम बारिश में खूब नहाना,
बरसात में है सबको मजा आता....
इसीलिए सावन है भाता,
आया सावन छायी हरियाली....
अम्बर में घिरी है घटा काली,
हर जगह अब फैला कीचड़....
पानी से गली है गई भर,
सावन में लगने लगे पेड़ों पर झूले....
बड़े हुए हम वो सब है अब भूले,
खेतों में जब बरसा पानी खुश हुआ किसान....
सूखी धरती में आई फिर से जान,
भीगते हुए बारिश में स्कूल जाना....
झमाझम बारिश में खूब नहाना,
बरसात में है सबको मजा आता....
इसीलिए सावन है भाता,
कवि : धर्मेन्द्र कुमार
कक्षा : 9
अपना घर
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें