शीर्षक :- हवा
हवा चलती सर-सर-सर....
पत्ते उड़ते फर-फर-फर,
कपडे भी उड़ जाते हैं....
पकड़ो तो हाथ न आते हैं,
हवा डाल-डाल में जाती है....
फूल पत्ते खूब गिराती है,
जब हवा का हुआ पदार्पण....
उसके सामने से हट गया दर्पण,
हवा के बारे में जितना लिखना....
उतना ही कम है,
मानना पड़ेगा हवा में....
वाकई दम है,
हवा चली सर-सर-सर....
पत्ते उड़ते फर-फर-फर,
हवा चलती सर-सर-सर....
पत्ते उड़ते फर-फर-फर,
कपडे भी उड़ जाते हैं....
पकड़ो तो हाथ न आते हैं,
हवा डाल-डाल में जाती है....
फूल पत्ते खूब गिराती है,
जब हवा का हुआ पदार्पण....
उसके सामने से हट गया दर्पण,
हवा के बारे में जितना लिखना....
उतना ही कम है,
मानना पड़ेगा हवा में....
वाकई दम है,
हवा चली सर-सर-सर....
पत्ते उड़ते फर-फर-फर,
कवि : मुकेश कुमार
कक्षा : 11
अपना घर
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