शीर्षक :- दुखी किसान
दु:खी किसानो को देखकर....
हाथों पर माथा टेककर,
किसान बस यही सोंचता है....
बरसा दे पानी आधी रात को,
बरसता है पानी रात को....
खेत भर जाते हैं,
किसानो के चेहरे पर....
खुशियाँ झलक जाती है,
बोया है जो फसल....
जब हरी हो जाती है,
फसल में निकला फूल तो....
खुशबू महक जाती है,
दु:खी किसानो को देखकर....
हाथों पर माथा टेककर,
किसान बस यही सोंचता है....
बरसा दे पानी आधी रात को,
बरसता है पानी रात को....
खेत भर जाते हैं,
किसानो के चेहरे पर....
खुशियाँ झलक जाती है,
बोया है जो फसल....
जब हरी हो जाती है,
फसल में निकला फूल तो....
खुशबू महक जाती है,
कवि : जीतेन्द्र कुमार
कक्षा : 9
अपना घर
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