शीर्षक :- भारत
भारत तुम कंहा हो....
एशिया, अमेरिका, यूरोप या अफ्रीका में,
अब तुम्हारा रूप है क्या?....
काला गोरा या लाल हरा,
गुरुओं ने बताया था तुम्हारा रूप....
ऋषियों ने समझाया था तुम्हारा स्वरूप,
विश्व गुरु से सम्मानित तुम थे....
मार्ग दर्शक थे सांस्कृतिक थे,
इतिहास था, स्त्रियों का सम्मान था....
पत्थरों के पुजारी थे,
सभ्यता का रस यही था....
नदियाँ थी, दूध की,
जल भी अमृत था....
ऐसी थी, गाथा,
तुम कम्प्युटर के युग में....
डिलीट हो गए क्या?,
या पेनड्राइप का हिस्सा बन गए....
या सेव कर लॉक कर दिया,
या पासवर्ड मिल नहीं रहा है क्या?....
कंहा? खो गए हो तुम भारत,
भारत तुम कंहा हो....
एशिया, अमेरिका, यूरोप या अफ्रीका में,
अब तुम्हारा रूप है क्या?....
काला गोरा या लाल हरा,
गुरुओं ने बताया था तुम्हारा रूप....
ऋषियों ने समझाया था तुम्हारा स्वरूप,
विश्व गुरु से सम्मानित तुम थे....
मार्ग दर्शक थे सांस्कृतिक थे,
इतिहास था, स्त्रियों का सम्मान था....
पत्थरों के पुजारी थे,
सभ्यता का रस यही था....
नदियाँ थी, दूध की,
जल भी अमृत था....
ऐसी थी, गाथा,
तुम कम्प्युटर के युग में....
डिलीट हो गए क्या?,
या पेनड्राइप का हिस्सा बन गए....
या सेव कर लॉक कर दिया,
या पासवर्ड मिल नहीं रहा है क्या?....
कंहा? खो गए हो तुम भारत,
कवि : किशन व्यास
पिपरिया, मध्य प्रदेश
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें