शीर्षक :- बचपन
दो साल का बच्चा होते देर नहीं....
इस छोटे से बचपन में,
कापियाँ और किताबों का भार....
हमारे सर बांध देते हैं,
बचपन की जिन्दगी तो....
खेलने की होती है,
लेकिन हमारे माँ बाप....
खेलने कहाँ देते हैं,
बस उनका तो एक ही सपना होता है....
मेरा बेटा आगे चलकर इंजीनियर बनेगा,
दो साल का बच्चा होते देर नहीं....
इस छोटे से बचपन में,
कापियाँ और किताबों का भार....
हमारे सर बांध देते हैं,
बचपन की जिन्दगी तो....
खेलने की होती है,
लेकिन हमारे माँ बाप....
खेलने कहाँ देते हैं,
बस उनका तो एक ही सपना होता है....
मेरा बेटा आगे चलकर इंजीनियर बनेगा,
कवि : जितेन्द्र कुमार
कक्षा : 9
अपना घर
1 टिप्पणी:
आपकी नायाब पोस्ट और लेखनी ने हिंदी अंतर्जाल को समृद्ध किया और हमने उसे सहेज़ कर , अपने बुलेटिन के पन्ने का मान बढाया उद्देश्य सिर्फ़ इतना कि पाठक मित्रों तक ज्यादा से ज्यादा पोस्टों का विस्तार हो सके और एक पोस्ट दूसरी पोस्ट से हाथ मिला सके । रविवार का साप्ताहिक महाबुलेटिन लिंक शतक एक्सप्रेस के रूप में आपके बीच आ गया है । टिप्पणी को क्लिक करके आप सीधे बुलेटिन तक पहुंच सकते हैं और अन्य सभी खूबसूरत पोस्टों के सूत्रों तक भी । बहुत बहुत शुभकामनाएं और आभार । शुक्रिया
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