शीर्षक :- "क्या सोंचेगी क्या बोलेगी"(प्रथ्वी )
क्यों जल्दी रहती है....
जाम में फसें लोगों को,
बाहर निकलने में....
क्यों लोग नहीं मानते है,
ट्रैफिक पुलिस की बातों को....
अपने आप को लोग क्या मानते हैं,
क्यों नहीं लोग एक दूसरे की....
बातों को समझते है,
अगर इस तरह प्रथ्वी भी....
उपद्रव करने लगे,
बड़ी जोर से हिलने लगे....
तो क्या रह पायेगी ये दुनिया,
क्यों नहीं हम धैर्य रख पाते हैं....
क्यों नहीं हम प्रथ्वी से सीख ले पाते हैं,
क्यों जल्दी रहती है....
जाम में फसें लोगों को,
बाहर निकलने में....
क्यों लोग नहीं मानते है,
ट्रैफिक पुलिस की बातों को....
अपने आप को लोग क्या मानते हैं,
क्यों नहीं लोग एक दूसरे की....
बातों को समझते है,
अगर इस तरह प्रथ्वी भी....
उपद्रव करने लगे,
बड़ी जोर से हिलने लगे....
तो क्या रह पायेगी ये दुनिया,
क्यों नहीं हम धैर्य रख पाते हैं....
क्यों नहीं हम प्रथ्वी से सीख ले पाते हैं,
कवि : ज्ञान कुमार
कक्षा : 9
अपना घर
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