शीर्षक :- मंहगाई
मंहगाई की है कैसी भरमार....
फिर भी व्यापारी आते है बाजार,
मंहगाई से जनता है बेहाल....
गरीब आदमी का हो रहा है बुरा हाल,
आखिर मंहगाई सरकार क्यों बढाती है....
यह बात हमें समझ नहीं आती है,
अगर व्यक्ति मंहगी सब्जी रोज लायेगा....
तो क्या? वह अन्य खर्च चला पायेगा,
अगर मंहगाई यूँ ही बढ़ती जाएगी....
क्या? जनता हमारी मिटटी खाएगी,
अगर मंहगाई में थोड़ी सी गिरावट आएगी....
तो जनता चैन की साँस ले पायेगी,
मंहगाई की तो बात निराली....
उसने पूरा पैसा कर दिया खाली,
मंहगाई की है कैसी भरमार....
फिर भी व्यापारी आते है बाजार,
मंहगाई से जनता है बेहाल....
गरीब आदमी का हो रहा है बुरा हाल,
आखिर मंहगाई सरकार क्यों बढाती है....
यह बात हमें समझ नहीं आती है,
अगर व्यक्ति मंहगी सब्जी रोज लायेगा....
तो क्या? वह अन्य खर्च चला पायेगा,
अगर मंहगाई यूँ ही बढ़ती जाएगी....
क्या? जनता हमारी मिटटी खाएगी,
अगर मंहगाई में थोड़ी सी गिरावट आएगी....
तो जनता चैन की साँस ले पायेगी,
मंहगाई की तो बात निराली....
उसने पूरा पैसा कर दिया खाली,
कवि : मुकेश कुमार
कक्षा : 11
अपना घर
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