सोमवार, 1 सितंबर 2025

कविता: "जिंदगी की तलाश में"

"जिंदगी की तलाश में" 
 ये मौसम फीका - फीका सा हैं ,
ये दिन सूखे - सूखे से हैं। 
सब लोग बेगाने से हैं  ,
इन सब के बीच हम अनजाने है। 
घर - बार छोड़कर इस अनजान सी हवेली में ,
आये है नई जिंदगी की तलश में ,
बन रहा है आगे भविष्य चलो चले हम पर्वत कैलाश में। 
नये जिंदगी की आश में ,
निकल पड़े साथी की तलाश में।  
आँखे में हमेश आँशु लेके ,
रहते है एक कोने में पड़े ,
एक पर्दे के पीछे छाया बनके ,
रहते है हमेश खड़े।
कवि: मंगल कुमार कक्षा: 9th 
अपना घर।  

2 टिप्‍पणियां:

Priyahindivibe | Priyanka Pal ने कहा…

चलो चले हम पर्वत कैलाश में , बहुत सुंदर

बेनामी ने कहा…

जी हाँ वहाँ का वातावरण बहुत अच्छा होता है।
आपका बहुत - बहुत शुक्रिया।